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________________ BREARREARSH णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन मंत्र दो प्रकार के होते है- (१) कूट और (२) अकूट। जिसमें अक्षर संयुक्त होते हैं, उसे कूट कहा जाता है। जहाँ संयुक्त अक्षर नहीं होते, उसे अकूट कहा जाता है। कूट मंत्र में जो अक्षर अधिक होते है, उनमें मंत्र तो एक ही अक्षर होता है, शेष के अक्षर तो मंत्र के परिकर- परिवार रूप होते हैं। सिद्धत्व की साधना में कषाय-विजय का स्थान अध्यात्म-साधना या आत्मोपासना के पथ पर आरूढ़ साधक के लिए यह परम आवश्यक है कि वह क्रोध, मान, माया एवं लोभ रूप कषायों को जीतने का प्रयास करे। ___क्रोध के वश में होकर मनुष्य अपना संतुलन खो देता है और बुरे से बुरा कार्य करते भी संकोच नहीं करता, वह अपने स्वरूप को सर्वथा भूल जाता है। ___मान के साथ भी यही बात है। जब किसी व्यक्ति को मन में मान, अहंकार, गर्व उत्पन्न हो जाता है तो वह अपने को सबसे महान् मानने लगता है, जो उसकी सबसे बड़ी भूल है। ऐसा मानने वाला श्रेयस या कल्याण के पथ से विचलित हो जाता है। माया, प्रवंचना, छलना भी एक ऐसा दोष है, जो अंत:करण में आत्म-विपरीत भाव उत्पन्न करता है। माया के परिणाम-स्वरूप और भी अनेक दोष जीवन में आ जाते हैं। लोभ मनुष्य को सत्पथ से विचलित कर देता है। जिससे व्यक्ति सर्वथा बहिर्द्रष्टा हो जाता है। अपने स्वभाव को भूल जाता है। मोक्ष-मार्ग या सिद्धत्व की दिशा में गतिशील साधक के जीवन में ये सबसे बड़े विघ्न हैं। इन्हें जीतना अत्यन्त आवश्यक है। । उसके जीवन में सच्चिंतन, मनन, निदिध्यासन एवं ध्यान आदि जो सिद्धत्व भाव की ओर ले जाने के उपक्रम हैं, सध नहीं पाते, इसलिए सिद्धत्व के आराधक को इन पर विजय पाना अत्यंत आवश्यक उस का योगशास्त्र में कषाय-विजय का मार्ग आचार्य हेमचंद्र ने योगशास्त्र में क्रोध, मान, माया, लोभ- इन चार कषायों का तथा उनके अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण तथा संज्वलन- इन चार भेदों का वर्णन किया है। १. योगशास्त्र, प्रकाश-४, श्लोक-६-२२, पृष्ठ : ११६-१२०. 277 POETRYAM SALMETARA FAICH SEENETROVARLITERASAIRMA
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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