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________________ BRE उत्तरवती जैन ग्रन्थों में सिद्ध-पद का निरूपण भाव अपने यहाँ तात्त्विक दृष्टि से विचार किया जाए तो ध्यान का संबंध निर्जरा से है। जैसा आचार्य उमास्वाति ने लिखा है न से 'तपसा निर्जरा च- तप से निर्जरा होती है, उसके साथ-साथ एक बात और है, आत्मोन्मुखभाव या शुद्धोपयोग निर्जरा के हेतु हैं। तप की दिशा में जो शुभात्मक कर्म प्रवृत्ति होती है, वह पुण्य की हेतु है। निर्जरा से आत्मा में निर्मलता आती है। पुण्य से सांसारिक सुख मिलते हैं, दुःख मिटते हैं, प्रतिकूलताएँ दूर होती हैं, अनुकूलताएं प्राप्त होती हैं। इसलिए ध्यान से भौतिक दु:खों की निवृत्ति की जो बात कही गई है, वह तात्त्विक दृष्टि से असंगत प्रतीत नहीं होती। काँप भर अर्हम् एवं सिद्ध-चक्र का विवेचन आचार्य हेमचन्द्र ने गुजरात के नरेश सिद्धराज जयसिंह द्वारा की गई अभ्यर्थना और प्रेरणा पर संस्कृत-व्याकरण की रचना की, जो सिद्धराज और उनके नाम पर 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस व्याकरण का पहला सूत्र- 'अर्हम है। तत्वप्रकाशिका टीका में 'अर्हम्' शब्द का विश्लेषण किया गया है। वहाँ उसे सिद्ध-चक्र का आदि बीज बतलाया गया है। अक्षर का अर्थ बीज है, जो आदि बीज द्वारा ज्ञापित किया गया है। सिद्ध चक्र-रूप तत्व के सबीज तथा निर्बीज- इस प्रकार दो भेद हैं। जो सबीज सिद्धचक्रात्मक तत्त्व है, उसका अहम् आदि बीज है। धर्मसारोत्तर में लिखा है- अक्षर तथा अनक्षर- दो प्रकार के तत्त्व हैं। उनमें जो बीज है, वह अक्षर तत्त्व कहा जाता है तथा जो बीज-रहित है, उसे अनक्षर तत्त्व कहते हैं। _अक्षर तत्त्व का एक और अर्थ है। जो अपने स्वरूप से क्षरित- नष्ट, चलित नहीं होता हो, वह अक्षर है। अक्षर शब्द द्वारा तत्त्वध्येयरूप ब्रह्म को लेना चाहिए अथवा वर्णात्मक अक्षर को लेना चाहिए। HASMS __ यदि अ, आ आदि में से कोई एक वर्ण हो तो उसे अक्षर कहा जाता है। किन्तु यहाँ अर्हम् में तो अधिक अक्षर मिले हुए हैं, इसलिए इसको वर्ण या अक्षर कैसे कहा जाए ? इसे तो 'अक्षराणि'बहुत अक्षर कहा जाना चाहिए, किन्तु यहाँ तो अक्षर कहा गया है, ऐसा क्यों ? १. तत्त्वार्थ-सूत्र, अध्याय-९, सूत्र-३. २. सिद्धहेमशब्दानुशासन-१, १, १ : नमस्कार-स्वाध्याय (संस्कृत-विभाग), पृष्ठ : २६-२८. 276 POST RARBA
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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