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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन अल्प-बहुत्व क्षेत्र आदि जिन ग्यारह विषयों का विचार किया गया है, उनके संबंध में संभावित भेदों की पारस्परिक न्यूनता और अधिकता पर विचार करना अल्पबहुत्व है। जैसे क्षेत्र सिद्धों में संहरणसिद्धों की अपेक्षा जन्मसिद्ध- संख्यात गुण अधिक होते हैं । ऊर्ध्वलोक - सिद्ध सबसे कम होते हैं । अधोलोक - सिद्ध उनसे संख्यात गुण अधिक होते हैं तथा तिर्यक् लोक सिद्ध उनसे भी संख्यात गुणा अधिक होते हैं। समुद्र सिद्ध सबसे कम होते हैं और द्वीप सिद्ध उनसे संख्यात गुण अधिक होते हैं। इसी तरह काल आदि प्रत्येक विषय के साथ अल्पबहुत्व का विचार किया जाता है। तत्त्वार्थ राजवार्त्तिक में मोक्ष-मार्ग आचार्य उमास्वाति रचित तत्त्वार्थ सूत्र पर भट्ट अकलंकदेव विरचित तत्त्वार्थ राजवार्तिक नामक सुप्रसिद्ध संस्कृत टीका है। तत्त्वार्थ के प्रथम सूत्र- 'सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:- इसका | विश्लेषण करते हुए वे लिखते हैं कि सांसारिक आत्माओं के लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- इन चार | पुरुषार्थों में मोक्ष ही अंतिम और सबसे मुख्य है । अत: उसे प्राप्त करने के लिये मोक्ष मार्ग का उपदेश | वांछित है । एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि जब मोक्ष ही अंतिम, निरुपम, सर्वश्रेष्ठ, प्रधान पुरुषार्थ है, तब उसी | का उपदेश किया जाना चाहिए। उसके मार्ग का उपदेश पहले कैसे किया जाए ? इसका समाधान प्रस्तुत करते हुए वार्तिककार लिखते हैं- मोक्ष के विषय में प्रायः सभी | सैद्धांतिकों का एक ही मंतव्य है। सभी दुःखों का सर्वथा निवृत्त हो जाना मोक्ष है, किंतु मोक्ष को प्राप्त करने के जो मार्ग हैं, उनमें उनके मंतव्य भिन्न-भिन्न हैं, परस्पर विवाद हैं । उदाहरणार्थ विभिन्न दिशाओं से जो यात्री पाटलिपुत्र जा रहे हों, उनका पाटलिपुत्र नगर के | अस्तित्व में कोई विवाद या मतभेद नहीं होता, किंतु वहाँ जाने के मार्गों में विवाद होता है। सब | अपने-अपने दृष्टिकोण के रूप में मार्ग स्वीकार करते हैं । इसी प्रकार जीवन के सर्वोच्च, परम लक्ष्य- मोक्ष में विभिन्न सैद्धांतिकों का विवाद या मतभेद नहीं है, किंतु उस ओर ले जाने वाले मार्ग में विभिन्न मत हैं । कुछ सैद्धांतिकों का मत है कि ज्ञान से ही मोक्ष प्राप्त होता है। यहाँ टीकाकार का संकेत केवल | अद्वैत वेदांत की ओर है, जिसको आद्यशंकर ने प्रतिष्ठित किया था । तदनुसार 'ऋते ज्ञानात् न मुक्ति:- अर्थात् ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती । 261
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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