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________________ उत्तरवर्ती जैन ग्रन्थों में सिद्ध-पद का निरूपण । 5 ही क्षेत्र है। थान एक नहीं होते हैं। कोई वर्तमान की अपेक्षा से सिद्ध-जीव न तो चारित्री ही होते है और न अचारित्री ही। भूतकाल की जल से यदि अंतिम समय को लेकर विचार किया जाय तो यथाख्यात चारित्री ही सिद्ध होते हैं तथा सके पूर्व समय को लें तो तीन सामायिक, सूक्ष्म-संपराय और यथाख्यात अथवा छेदोपस्थापनीय, मध्य-संपराय, एवं यथाख्यात, चार- सामायिक, परिहार-विशुद्धि, सूक्ष्म-संपराय एवं यथाख्यात और पांच-सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार-विशुद्धि, सूक्ष्म-संपराय तथा यथाख्यात चारित्रों से सिद्ध होते हैं। प्रत्येक-बुद्ध-बोधित प्रत्येक-बुद्ध-बोधित और बुद्ध-बोधित दोनों सिद्ध होते हैं। जो किसी के उपदेश के बिना अपनी जान शक्ति से सिद्ध होते है, वे स्वयं-बुद्ध हैं। अरिहंत तथा अरिहंत-भिन्न ये दो प्रकार के हैं। जो अरिहंतों से भिन्न होते हैं, वे दोनों प्रत्येक-बोधित या प्रत्येक-बुद्ध कहलाते हैं। जो दूसरे ज्ञानी पुरुष से उपदेश ग्रहण कर सिद्धत्व प्राप्त करते हैं, वे बुद्ध-बोधित कहलाते हैं। इनमें ऐसे होते है जो दूसरों को बोध कराते हैं और कई केवल आत्म-कल्याण साधते हैं। मय में सिद्ध न्मे हुए जीव अंतिम भव को लेकर ज्ञान वर्तमान की अपेक्षा से केवल ज्ञानी ही सिद्धत्व प्राप्त करते हैं। भूतकाल की अपेक्षा से दो- मति, श्रुत, तीन- मति, श्रुत, अवधि, अथवा मति, श्रुत, मन: पर्याय, तथा चार- मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्याय ज्ञान वाले भी सिद्धत्व प्राप्त करते हैं। संवेदन है नपुंसक अवगाहना ट से यदि __ वर्तमान की अपेक्षा से जिस शरीरावगाहना से सिद्ध हुए हों, सिद्धावस्था में उसी का २/३ अवगाहना होती है। -लिंग अंतर अंतर का अर्थ व्यवधान है। किसी एक जीव के सिद्ध होने के बाद तुरंत ही जब दूसरा जीव सिद्ध होता है तो उसे निरंतर-सिद्ध कहा जाता है। जब किसी के सिद्धत्व प्राप्त करने के बाद अमुक समय व्यतीत होने पर कोई सिद्ध होता है तो वह सान्तर-सिद्ध कहलाता है। दोनों के सिद्धत्व पाने का अंतर |कम से कम एक समय और अधिक से अधिक छ: महिने है। ई तीर्थ सख्या एक समय में कम से कम एक और अधिक से अधिक १०८ सिद्ध होते हैं। 260 अनिल
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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