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________________ पामा सिताण पद समीक्षात्मक अनशीलन अंतकृत् केवली, प्रतिमाधारी मुनि, जंघाचरण-सिद्धि-युक्त मुनि, विद्याचरण-सिद्धि-संपन्न मुनि, आमर्पोषधि-लब्धि आदि विभिन्न सिद्धियोग से तथा विभिन्न लब्धियों से युक्त एवं विभिन्न स्थितियों में विद्यमान मुनिवृंद का इनमें समावेश है। सिद्धिचंद्रगणीकृत व्याख्या सिद्धिचंद्र गणी ने 'सप्तस्मरण' की वृत्ति के प्रारंभ में णमोक्कार महामंत्र की व्याख्या की है। जैसा कि उन्होंने उल्लेख किया है, वे वाचक-शिरोमणि भानुचंद्र के शिष्य थे, जो दिल्ली के बादशाह अकबर और जहाँगीर के दरबार में सम्मानित विद्वान् थे। उन्होंने णमोक्कार-महामंत्र की व्याख्या के अंतर्गत सिद्ध-पद का विवेचन करते हुए लिखा है___णमो सिद्धाणं- जिन्होंने प्रभूत काल से बंधे हुए आठ कर्मों को शुक्ल-ध्यान की अग्नि से भस्म | कर डाला, उन सिद्धों को नमस्कार है।' श्री हर्षकीर्ति सूरि द्वारा सिद्ध-पद-निरूपण श्री हर्षकीर्ति सूरि ने जो कि नागपुरीय तपोगच्छ के आचार्य थे, णमोक्कार मंत्र की व्याख्या के अंतर्गत सिद्ध-पद का विश्लेषण करते हुए लिखा है षिञ् बन्धने'- (पाणिनीय धातुपाठ १४७८) के अनुसार जिन्होंने पूर्वकाल में बंधे हुए आठ प्रकार के कर्मों को शुक्ल-ध्यान की अग्नि द्वारा जला डाला, दग्ध या भस्म कर डाला, वे सिद्ध हैं । यह सिद्ध का व्युत्पत्तिजन्य अर्थ है। अथवा जिन्होंने 'सिद्धिगति' नामक स्थान को प्राप्त कर लिया, वे सिद्ध हैं। अर्थात् जिन्होंने अपने लक्ष्य को भलीभाँति साधित कर लिया, मोक्ष प्राप्त कर लिया, जो जन्म-मरण से सर्वथा छूट गए , इस प्रकार अपना संपूर्ण लक्ष्य प्राप्त कर लिया, वे सिद्ध हैं। उनको नमस्कार है। संस्कृत में जैन मनीषियों द्वारा ग्रंथ-रचना जैसा पहले विवेचन हुआ है, जैन धर्म का सर्वाधिक प्राचीन साहित्य प्राकृत-भाषा में है, जो आगमों के रूप में आज हमें उपलब्ध है। भगवान् महावीर के समय में प्राकृत लोक-भाषा थी। पश्चिमोत्तर, उत्तर एवं पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न प्रदेशों में लोगों की बोल-चाल की भाषा के रूप में प्रयुक्त थी। १. नमस्कार-स्वाध्याय (प्राकृत-विभाग), पृष्ठ : १०. २. नमस्कार-स्वाध्याय (प्राकृत-विभाग), पृष्ठ : १२. 255
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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