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________________ G णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन प्राकृत रचनाओं में सिद्ध-पद जैसा पूर्व प्रसंगों में वर्णित हुआ है, प्राकृत उत्तर भारत की जन-जन की भाषा के रूप में प्रसृत थी। भिन्न-भिन्न प्रदेशों में उसके भिन्न-भिन्न रूप प्रयोग में आते थे। वे भाषाएं मागधी, अर्द्धमागधी, शौरसेनी तथा पैशाची आदि के नामों से विख्यात थीं। यह विवेचन किया जा चुका है कि भगवान् महावीर ने अर्द्धमागधी में धर्म-देशना दी, जो अंग-सूत्रों के रूप में प्राप्त है। आगमों के पश्चात् जैन आचार्य, मुनि एवं विद्वान् प्राकृत में साहित्य रचना करते रहे। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित 'सन्मति तर्क' प्राकृत का एक प्राचीन ग्रन्थ है। उसमें उन्होंने नैयायिक दृष्टि से जैन सिद्धांतों का विवेचन किया है, जो बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत में इस शैली में रचा गया यह अद्वितीय ग्रंथ है। जैसा उल्लेख किया गया है, अर्द्धमागधी आगमों पर प्राकृत में नियुक्तियों और भाष्यों के रूप में व्याख्यामूलक साहित्य रचा गया, जो पद्यात्मक है। आगे चलकर चूर्णियों के रूप में एक ऐसे साहित्य का सर्जन हुआ, जिसमें प्राकृत और संस्कृत के मिश्रित रूप का प्रयोग हुआ। इन व्याख्यामूलक रचनाओं के अतिरिक्त और भी अनेकविध प्राकृत ग्रन्थ रचे गए। प्राकृत ग्रंथों में णमोक्कार मंत्र के अंतर्गत सिद्ध-पद का उल्लेख और विवेचन हुआ है। यहाँ उस संबध में संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है। SUSHANTalkhunaristhool DoShori सिद्ध शब्द की व्युत्पत्ति प्राकृत में विद्वानों ने सिद्ध-पद की अनेक प्रकार से व्युत्पत्ति की है। इनमें से कतिपय का यहाँ उल्लेख किया जा रहा है १. निरुवसुखाणि सिद्धाणि एसिं ति सिद्धाः।' जिन्होंने निरुपम- परमानंद स्वरूप, कल्याणमय, अनुपम सुख प्राप्त कर लिया है, साध लिया है, वे सिद्ध हैं। २. 'अट्ठप्पयारकम्मक्खएण सिद्धा सिद्धिं एसिं ति सिद्धाः।' आठ प्रकार के कर्मों का क्षय कर जिन्होंने सिद्धि प्राप्त की, वे सिद्ध हैं। ३. 'सियं-बद्धं कम्म, झायं-भस्मीभूयमेसिमिति सिद्धाः ।' दीर्घकाल से बंधे हुए आठ प्रकार के कर्म, जिनके भस्म हो गए हैं, वे सिद्ध हैं। 245 BAR MEMESTRATORS
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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