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________________ ndia HTRA MANRAISAMSTER H । TALIRAMA mins I Marorani णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन iihrPANTARVASNA PRAHA w wwine सार्व- सभी जीवों का जो हित करते हैं, वे 'सार्व-साधु' हैं अथवा जो सार्व- सर्वज्ञ अरिहंत साधु हैं, बुद्ध आदि के नहीं, इसका यह भाव लेना चाहिए। जो सभी शुभ योगों को साधते हैं, पालन करते हैं, वे सर्व साधु हैं । अथवा जो जिनेश्वर भगवान की आज्ञा का पालन करते हैं, अरिहंतों की आराधना करते हैं, अथवा जो दुर्नय को दूर करते हैं, अन्र मतों का निषेध (खंडन), निराकरण करते हैं, वे सर्व साधु या सार्व साधु हैं। __जो श्रव्य- श्रवण करने योग्य वाक्यों में अथवा सव्य- अनुकूल कार्यों में निपुण हैं, वे श्रव्य साधु या सव्य अर्थात् सर्व साध हैं। उनको नमस्कार है। णमो लोए सब्यसाहूणं' में सर्व शब्द देश-सर्वता का वाचक है। देश-सर्वता के साथ अपरिशेषता के प्रतिपादन हेतु लोए-लोक में या मनुष्य-लोक में ऐसा प्रयोग किया गया है। केवल गच्छ आदि के साथ इसका सम्बन्ध नहीं है। जो सर्वत्र साधु हैं, उन्हें नमस्कार हो। उनकी नमनीयता मोक्ष-मार्ग में चलने वाले जीवों के लिये सहायक होने से उपकारक है। इसलिए वे नमस्कार-योग्य हैं। कहा गया है- असहायक के रूप में संयम का पालन करते हुए, मुझे जो सहायता प्रदान करते हैं, उन सर्व साधुओं को मैं नमस्कार करता हूँ।' । यहाँ एक शंका उपस्थित होती है। यदि नमस्कार संक्षेप में करना हो तो सिद्धों और साधु को करना ही उपयुक्त है, क्योंकि अर्हत् आदि साधु से भिन्न नहीं हैं, वे साधुओं में समाविष्ट हो जाते हैं। यदि विस्तार से करना हो तो ऋषभदेव आदि सभी का व्यक्तिश: नामोच्चारण करना चाहिए। यहाँ ऐसी शंका करना उचित नहीं है, क्योंकि केवल साधु को नमस्कार करने से अरिहंत आदि को नमस्कार करने का फल प्राप्त नहीं होता। जैसे केवल मनुष्यों को नमस्कार करने से वह फल नहीं मिल पाता, जो राजा को नमस्कार करने से मिलता है। अर्थात् राजा को तो अलग रूप में ही नमस्कार करने से फल-प्राप्ति होती है। इसलिए अरिहंतों को विशेष रूप से नमस्कार करना चाहिए। व्यक्ति-व्यक्ति का नाम लेकर नमस्कार नहीं किया जाता, क्योंकि ऐसा करना असंभव है। एक शंका और है, जो सबसे प्रधान होता है, पहले उसे लिया जाता है, तदनुसार सिद्ध भगवान् को पहले नमस्कार करना चाहिए। इसका समाधान करते हुए लिखा है- यह शंका उचित नहीं है, | क्योंकि अहँतों के उपदेश से ही सिद्ध ज्ञायमान हैं, जाने जाते हैं तथा तीर्थ का- चतुर्विध-धर्म-संघ का प्रवर्तन करने के कारण अरिहंत अत्यंत उपकारी हैं। इसलिए अरिहंत एवं सिद्ध यह क्रम रखा गया । है। अर्थात् अरिहंत-पद को पहले रखा गया है। WEANINe SAHARAN MARWAMERIKANSAR SONVENTS MANISHA awonmamoussionETER १ आवश्यक-नियुक्ति, गाथा-१०१३. 243 Post । MACHAR AMARI H
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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