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________________ उत्तरवर्ती जैन ग्रन्थों में सिद्ध-पद का निरूपण प्रकार पाव से Fatch तों के अष्ट कर्मों के नाश के कारण सिद्धों के ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि गुण अविनाशी हैं, जिससे भव्य जनों में अत्यंत प्रमोद, आध्यात्मिक आनंद उत्पन्न करने के कारण उनके उपकारक हैं, इसलिए वे वंदनीय हैं। 'मंगलमय नवकार' नामक पुस्तक में कहा गया है "सिद्धावस्था आत्मा की चरम तथा परम-अवस्था है। सिद्धावस्था प्राप्त होने के पश्चात् आत्मा का कोई पर्याय बाकी नहीं रहता। जब तक यह अवस्था प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक बार-बार जन्म और मृत्यु होती रहती है।"२ । "सिद्ध कभी संसार में नहीं आते, क्योंकि संसार कर्मों के संयोग से होता है तथा कर्म आस्रवों द्वारा बंधते हैं। सिद्ध भगवन्तों के कोई भी आस्रव नहीं है, जिससे उनके कर्म नहीं बंधते, अत: जिसके कर्म का संयोग ही नहीं, उनके फिर संसार- जन्म, मरण कैसे होगा ?३ "कर्म-युक्त आत्मा का कर्म-मुक्त बनना, संसारी आत्मा का सिद्धत्व-युक्त बनना, क्षणभंगुर से शाश्वत बनना, यही सिद्ध-पद है।" शुद्धात्मा के स्वरूप के संबंध में कहा गया है "हे शुद्धात्मन् ! आपका स्वरूप अचिन्त्य है। असंख्य आत्म-प्रदेशों में अनंत गुण प्रकट हुए हैं। एक-एक आत्म-प्रदेश में अनंत गुण होते हुए भी प्रत्येक गुण स्वतंत्र रूप से परिणमित हो रहा है। शुद्ध हुआ आपका आत्म-द्रव्य देहजन्य आकार-रहित अर्थात् निराकार है।"५ नहीं विधि रजो •जो कि णमो आयरियाणं मान इस पद में 'अ'-- उपसर्ग का अर्थ मर्यादापूर्वक है। वे (आचार्य) जिनशासन- जैन सिद्धांतों के खर ध १. (क) णमोकार ग्रंथ, पृष्ठ : ९४. (ख) श्री नवकार महामंत्र, पृष्ठ : ७६. (ग) णमोकार दोहन, पृष्ठ : ६६. (घ) णमोकार महामंत्र, पृष्ठ : २३. (ङ) अध्यात्म अमृत, पृष्ठ : २५. (च) णमोकार-महामंत्र (रतनचन्द भारिल्ल), पृष्ठ : २२. (छ) श्री नवपद आराधना, पृष्ठ : २५-२८. (ज) नमस्कार महामंत्र (उपोद्घात) (श्री भानुविजयजी), पृष्ठ: १३. (झ) नवकार महामंत्र (नरेन टी. शाह), पृष्ठ : १२, १३. (ज) स्वरुप-मंत्र, पृष्ठ : २०, २१. २. मंगलमय नवकार, पृष्ठ : ७९. ३. नवपद प्रकाश (सिद्ध-पद), पृष्ठ : ११. ४. नवपदहृदयमां परमपद सहजमां, पृष्ठ : २०. ५. अनंत तो आनंद, पृष्ठ : ३९६. 240 KAMANAR -
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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