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AA णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन।
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५. स्वय-बुद्ध-सिद्ध
कुछ ऐसे जीव होते हैं, जो धर्माचार्य या गुरु के उपदेश के बिना ही जातिस्मरणादि ज्ञान से प्रेरित होकर बोध प्राप्त करते हैं, सिद्ध होते हैं, वे स्वयं-बुद्ध-सिद्ध के रूप में अभिहित होते हैं । नमिराजर्षि इसके उदाहरण हैं। ६. प्रत्येक-बुद्ध-सिद्ध
जो किसी बाह्य निमित्त को देखकर स्वयमेव प्रतिबोध पाकर सिद्ध होते हैं, वे प्रत्येक-बुद्ध-सिद्ध हैं, जैसे करकंडु आदि। ७. बुद्ध-बोधित-सिद्ध
आचार्य आदि ज्ञानी जन से प्रतिबोध पाकर जो सिद्ध होते हैं, वे बुद्ध-बोधित-सिद्ध हैं। यथाआर्य जम्बू आदि। ८. स्त्री-लिंग-सिद्ध
जो स्त्री शरीर से सिद्धत्व प्राप्त करते हैं, वे स्त्रीलिंग सिद्ध हैं। यथा- मल्लि तीर्थंकर, मरुदेवी आदि इसके उदाहरण हैं। ९. पुरुष-लिंग-सिद्ध ___ पुरुष शरीर में स्थित होते हुए जो सिद्ध होते हैं, वे पुरुष-लिंग सिद्ध हैं। १०. नपुसंक-लिंग-सिद्ध
जो नपुंसक शरीर के रहते हुए सिद्ध होते हैं, वे नपुंसक-लिंग-सिद्ध कहे जाते हैं।
यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जो जन्म से ही नपुंसक होते हैं, वे सिद्ध नहीं होते। जो कृत्रिम रूप से, बाह्य कारणों से नपुंसक हो जाते हैं, वे सिद्ध हो सकते हैं। ११. स्व-लिंग-सिद्ध
जो जैन मुनि के वेष में, रजोहरणादि के रहते हुए सिद्ध हों, वे स्व-लिंग सिद्ध हैं। १२. अन्य-लिंग-सिद्ध
जो दूसरे संप्रदायों के परिव्राजक, संन्यासी, आदि वेष में रहते हुए सिद्ध होते हैं, वे अन्य-लिंगसिद्ध हैं।
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