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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
जीवों के अभिगम का निरूपण
जीवाभिगम कितने प्रकार का है ? जीवाभिगम दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है- संसार-समापन्नक जीवाभिगम तथा असंसार-समापन्नक जीवाभिगम ।'
असंसार-समापन्नक जीवाभिगम कितने प्रकार का है ? असंसार-समापन्नक जीवाभिगम दो प्रकार का प्रतिपादित किया गया है- अनंतर-सिद्ध-असंसार-प्राप्त जीवाभिगम तथा परंपरसिद्ध-असंसार-प्राप्त जीवाभिगम।
संसार समापन्नक वे जीव हैं, जो संसार में- नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-चारों गतियों में भ्रमण करते हैं । असंसार-समापन्नक वे जीव हैं, जो संसार में विद्यमान नहीं हैं अर्थात् भवभ्रमण से छूटकर मोक्ष पा चुके हैं। मोक्ष असंसारावस्था है। सिद्ध. जीव असंसार-समापन्नक कहे गए हैं।
सिद्ध या मुक्त जीवों के दो भेद हैं- अनन्तर-सिद्ध एवं परंपर-सिद्ध।
जो जीव सिद्धत्व के प्रथम समय में विद्यमान हैं अर्थात् जिनके सिद्धत्व में समय का अंतर नहीं हैं, |जो एक ही समय में सिद्ध हुए हैं, वे अनन्तर-सिद्ध कहलाते हैं।
जो एक ही समय में सिद्ध नहीं हुए हैं किन्तु जिनके सिद्धत्व में तीन से लेकर अनंत समय का अंतर है, वे परंपर-सिद्ध कहलाते हैं।
अनंतर-सिद्ध के पंद्रह भेद माने गए हैं। (१) तीर्थ-सिद्ध, (२) अतीर्थ-सिद्ध, (३) तीर्थंकर-सिद्ध (४) अतीर्थंकर-सिद्ध (५) स्वयं-बुद्ध-सिद्ध (६) प्रत्येक-बुद्ध-सिद्ध (७) बुद्धबोधित-सिद्ध (८) स्त्री-लिंग-सिद्ध (९) पुरूष-लिंग-सिद्ध (१०) नपुसंक-लिंग-सिद्ध (११) स्व-लिंग-सिद्ध (१२) अन्य-लिंग-सिद्ध
(१३) गृहस्थ-लिंग-सिद्ध (१४) एक-सिद्ध (१५) अनेक-सिद्ध ।' १. तीर्थ-सिद्ध
तीर्थ शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। जिसके द्वारा तिरा जाय, वह तीर्थ है, यह इस का
१. जीवाजीवाभिगम-सूत्र, प्रथम प्रतिपत्ति सूत्र-६, ७, पृष्ठ : १८. २. मोक्षमार्ग, भाग-१, पृष्ठ : ३४-३६.
३. सर्व धर्म सार-महामंत्र नवकार, पृष्ठ : ३३-३५.
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