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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन होते हैं। उनमें दर्शनोपयोग एवं ज्ञानोपयोग होता है। इस प्रकार वे साकार-विशेष ज्ञानरूप उपयोग तथा अनाकार- सामान्य दर्शन रूप उपयोग से युक्त होते हैं। वे केवल-ज्ञानोपयोग द्वारा जगत् के समस्त पदार्थों के गुणों को और पर्यायों को जानते हैं तथा अनंत केवल दर्शन द्वारा सर्वत:- सब ओर से समस्त भावों को देखते हैं।' सिद्धों का सुख सिद्धों का सुख अव्याबाध- सब प्रकार की बाधाओं और विजों से रहित है। वह शाश्वत है। वैसा सुख न तो मानव को प्राप्त है और न देवों को ही। तीनकाल गुणित- तीनों कालों से गुणा किया हुआ देवों का अनंत सुख यदि अनंतबार वर्ग-वर्गित किया जाए तो भी वह मोक्ष-सुख के सदश नहीं होता। पर्य्यवगाहन कल्पना करें, यदि देवताओं के सुख को वर्तमान, भूत और भविष्य तीनों कालों से गणित किया जाए। और उसे लोक एवं अलोक के अनंत प्रदेशों पर रखा जाए अर्थात् सारे प्रदेश उससे भर जाएं तो उसे अनंत देवसुख कहा जाता है। गणित के सिद्धांतानुसार दो समान संख्याओं का आपस में गुणन करने से जो गुणनफल होता है| उसे वर्ग या वर्गफल कहा जाता है। वर्ग का वर्ग से गुणन करने से जो गुणनफल आता है, उसे वर्ग-वर्गित कहा जाता है। उदाहरण के लिए पाँच के अंक को लें। पाँच से पाँच का गुणन करने पर गुणनफल पच्चीस होता है। उसे वर्ग या वर्ग-फल कहा जाता है। पच्चीस से पच्चीस को गुणित करने पर छ: सौ पच्चीस गुणनफल आता है, वह वर्ग-वर्गित है। ऊपर देवों का जो अनंत सुख कहा गया है, यदि उसे अनंत बार वर्ग-वर्गित किया जाए, तो भी वह मोक्ष-सुख के तुल्य नहीं हो सकता। सिद्धों के सुख की अनुपमता का, गणित की दृष्टि से वर्णन करते हुए सूत्रकार का कथन हैं कल्पना करें, एक सिद्ध के सुख को तीनों कालों से गुणित किया जाए, वैसा करने पर जो सुखराशि निष्पन्न हो, यदि उस सुख राशि को अनंतवर्ग से विभाजित किया जाए तो भागफल के रूपमें जो सुखराशि प्राप्त हो, वह इतनी अधिक होती है कि सारे आकाश में समा नहीं सकती। १. औपपातिक-सूत्र, सूत्र-१७८, १७९, पृष्ठ : १७९. २. औपपातिक-सूत्र, सूत्र-१८०, १८१, पृष्ठ : १७९, १८०. 205 KAR MARAT
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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