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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
भगवान्-गौतम ! सिद्ध होते हुए जीव छ: संस्थान-समचतुरस, न्यग्रोध, परिमंडल, सादि, वामन, कुब्ज, हुंडक- इनमें से किसी भी संस्थान से सिद्ध हो सकते हैं। | गौतम- भगवन् ! सिद्धयमान सिद्ध कितनी ऊँचाई में सिद्ध होते हैं ? अर्थात् उनके शरीर की ऊचाई कितनी होती है ? ___भगवान्- गौतम ! सिद्ध होते हुऐ जीवों की ऊँचाई जघन्य- कम से कम सात हाथ तथा उत्कृष्टअधिक से अधिक पाँचसौ धनुष-प्रमाण होती है।
गौतम-- भगवन् ! सिद्ध्यमान जीव कितने आयुष्य में सिद्ध होते हैं ?
भगवान्- गौतम ! सिद्ध्यमान जीव कम से कम आठ वर्ष से कुछ अधिक आयुष्य में तथा अधिक से अधिक करोड पूर्व के आयष्य में सिद्ध होते हैं।'
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सिद्धों का आवास
गौतम ने भगवान् से सिद्धों के आवास के विषये में जिज्ञासा करते हुए पूछ - भगवन् ! क्या सिद्ध रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे निवास करते हैं ?
भगवान् ने बतलाया कि वे रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि नारक भूमि के नीचे निवास नहीं करते।
आगे गौतम के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कहा- सिद्ध सौधर्म कल्प, ईशान, सनत्कुमार आदि विमानों के नीचे भी निवास नहीं करते । तब फिर गौतम ने जिज्ञासा की-वे ईषत्-प्रारभारा-पृथ्वी के नीचे निवास करते हैं ? भगवान् ने उसके संबंध में भी निषेध किया, तब गौतम ने पूछा- भगवान् फिर सिद्ध कहाँ निवास करते हैं ?
भगवान् ने बतलाया कि ईषत्-प्रारभारा-पृथ्वी के तल से उत्सेधांगुल द्वारा एक योजन पर लोकाग्र भाग है। उस योजन के ऊपर के कोस के छठे भाग पर सिद्ध निवास करते हैं। वे सादि-आदि-सहित तथा अंत-रहित हैं। सब दु:खों का अतिक्रांत कर चुके हैं। शाश्वत नित्य और सदा सुस्थिर स्वरूप में वहाँ संस्थित हैं। इसे सिद्धलोक भी कहा जाता है।
औपापातिक-सूत्र में सिद्धों के प्रतिहत- प्रतिष्ठित तथा स्थित होने के संबंध में संक्षेप में विवेचन किया गया है।
|१. औपपातिक-सूत्र, सूत्र-१४६, १५९, पृष्ठ : १७३-१७४. २. औपपातिक-सूत्र, सूत्र-१६३, १६७, पृष्ठ : १७५-१७७. ३. जैन लक्षणाबली (जैन पारिभाषिक शब्द कोश) (प्रथम भाग), पृष्ठ-२३.
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