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आगमों में सिद्धपद का विस्तार
नहीं
सार्थक होती है, जब मूर्तिकार का उसको योग मिलता है। उसी प्रकार जब बोधप्रद सत्पुरुष का योग मिलता है. तब भवसिद्धिक जीव संयम- तपमय मुक्ति मार्ग अपनाता है और उस पर आगे बढ़ता हुआ यथाकाल सिद्धत्व प्राप्त करता है।
केवली तथा सिद्ध का ज्ञान
केवली तथा सिद्ध द्वारा जानने, देखने के संबंध में व्याख्याप्रज्ञप्ति-सूत्र में गणधर गौतम और भगवान् महावीर के प्रश्नोत्तर के रूप में विवेचन हुआ है, जो इस प्रकार है।
गौतम-- भगवन् ! क्या केवलज्ञानी त्रयोदश गुणस्थानवर्ती सर्वज्ञ छद्मस्थ को जानते-देखते हैं ? भगवान-गौतम ! वे जानते-देखते हैं।
गौतम- भगवन ! जिस प्रकार केवलज्ञानी छदमस्थ को जानते-देखते हैं, क्या सिद्ध भी छमस्थ को उसी तरह जानते है?
भगवान-गौतम् ! सिद्ध भी केवली की तरह जानते-देखते हैं। गौतम- भगवन् ! क्या केवलज्ञानी क्षेत्रप्रतिनियत अवधिज्ञान से युक्त पुरुष को जानत-देखते हैं। । भगवान्– हाँ, वे जानते-देखते हैं । इसी प्रकार केवली एवं सिद्ध परमावधि ज्ञानी को जानते-देखते हैं। वे केवलज्ञानी को भी जानते-देखते हैं।
गौतम- जिस प्रकार केवलज्ञानी सिद्ध को जानते-देखते हैं, क्या सिद्ध भी अन्य सिद्ध को उसी प्रकार जानते-देखते हैं ?
भगवान्- हाँ गौतम ! वे उसी प्रकार जानते-देखते हैं।
गौतम- क्या केवलज्ञानी भाषण करते हैं ? बोलते हैं ? क्या व्याकरण-समाधान करते हैं ? या प्रश्न का उत्तर देते हैं ?
भगवान् – गौतम ! वे भाषण करते है तथा समाधान करते हैं।
गौतम- भगवन् ! जिस तरह केवली भाषण करते हैं या समाधान करते हैं, क्या सिद्ध भी इसी प्रकार भाषण करते हैं या समाधान करते हैं ?
भगवान् ने कहा- ऐसा नहीं होता।
गौतम ऐसा क्यों कहते हैं कि केवली भाषण करते हैं तथा समाधान करते हैं परंतु सिद्ध भाषण नहीं करते, समाधान नहीं करते. प्रश्न का उत्तर नहीं देते।
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