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________________ - णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन । भगवान्- गौतम ! केवलज्ञानी सोत्थान, सकर्म, सबल, सवीर्य तथा सपुरुषाकार-- सपराक्रम होते हैं अर्थात् उत्थान, कर्म, बल, वीर्य तथा पुरुषाकार- पराक्रम से युक्त होते हैं, किंतु सिद्ध उत्थानादि से रहित होते हैं, इसलिए वे केवलज्ञानी की तरह भाषण नहीं करते, प्रश्न का उत्तर नहीं देते। गौतम- भगवन ! क्या केवलज्ञानी उन्मेष तथा निमेष करते हैं ? अपने नेत्र खोलते हैं मूंदते हैं ? भगवान्-गौतम ! केवलज्ञानी उन्मेष-निमेष करते हैं किंतु जैसा पहले कहा गया है, उत्थानादि। से रहित होने के कारण सिद्ध ऐसा नहीं करते। उसी प्रकार केवलज्ञानी अपने शरीर का आवर्तन-संकोचन करते हैं, तथा प्रसार करते हैं, फैलाते हैं। वे खड़े होते हैं। बैठते हैं। करवट बदलते हैं। सोते हैं, आवास स्थान में रहते हैं। वे अल्पकाल के लिए निवास करते हैं। सिद्ध भगवान के विषय में यह ज्ञातव्य है कि पूर्वोक्त कारणों से वे ये सब बातें नहीं करते। गौतम- भगवान् क्या केवली रत्नप्रभा पृथ्वी को 'यह रत्नप्रभा है।' इस तरह जानते-देखते हैं ? भगवान्- हाँ, वे जानते-देखते हैं। गौतम- जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी को जानते-देखते हैं, उसी प्रकार सिद्ध भगवान् भी जानते-देखते हैं। इस वर्णन के बाद गौतम भगवान से शर्कराप्रभा पृथ्वी से लेकर तम तमः पथ्वी तक तथा सौधर्म कल्प से लेकर अनुत्तरविमान तक एवं ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी तक जानने-देखने के संबंध में भगवान् से प्रश्न करते हैं। भगवान् उनका पूर्ववत उत्तर देते है कि जिस प्रकार केवलज्ञानी इनको जानते-देखते हैं, उसी प्रकार सिद्ध भी उनको जानते-देखते हैं। फिर गौतम परमाण-पद्गल तथा द्विप्रदेशी स्कंध आदि के संबंध में भगवान से वैसे ही प्रश्न करते हैं। भगवान उत्तर देते हैं कि परमाणु-पद्गल एवं द्विप्रदेशी स्कंध से लेकर अनंत प्रदेशी स्कंध तक केवली और सिद्ध जानते-देखते हैं। उपर्युक्त प्रश्नोत्तर के बाद गौतम भगवान द्वारा प्रतिपादित तथ्यों को श्रद्धापूर्वक, दृढ़तापूर्वक स्वीकार करते है। व्याख्याप्रज्ञप्ति-सूत्र, भाग-४, शतक-१४, उद्देशक-१०, सूत्र-१-१३, पृष्ठ : ४२९, ४३०. २. व्याख्याप्रज्ञप्ति-सूत्र, भाग-४, शतक-१४, उद्देशक-१०, सूत्र-१४-२४, पृष्ठ : ४३२, ४३१. 193
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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