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________________ AMINMECE ARE CH णमो सिद्धाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन । HASTRIAN A rahineKOHAMMARomindiwwecom S RVESTME PIANTAVASw Sonote aaune amaste w MINIKESIMARHAMARRIANISHASURVEDIKNHalHorouTORICRAFTAASARTAINARRESPRINTINENTRE RA Relamanentative PATANAHARASH भवसिद्धिक जीवों के संबंध में जो स्वाभाविकता उनका सहज-भाव है। जो कार्य-स्वभाव से किंतु कर्मों के या उद्यम के फलस्वरूप. होता है, उसे पारिणामिक कहा जाता है। ___ पारिणामिक और स्वाभाविक में अंतर यह है कि स्वाभाविक तो निश्चिय रूप से निष्पन्न होता है किंतु पारिणामिक पर यह बात लागू नहीं होती। वह होता भी है और नहीं भी होता है। जयंती ने पुन: प्रश्न किया- भगवन् ! क्या समस्त भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे ? भगवान्- जयंती सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे। जयंती- भगवन् ! यदि समग्र भवसिद्धिक जीव सिद्धत्व पा लेंगे तो क्या लोक उनसे शुन्य जाएगा ? भगवान्- जयंती ! ऐसा नहीं होता। जयंती- भगवन् ! सभी भवसिद्धिक जीव सिद्धत्व प्राप्त कर लेंगे तो भी लोक भवसिद्धिक जी से शून्य नहीं होगा- ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? भगवान-जयंती! जैसे कोई अनादि, अनंत, परित, परिमित तथा परिवत सर्वाकाश की कोई श्रेणं हो, उसमें से प्रत्येक समय एक-एक परमाणु जितना खंड अनंत उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी तक निकाल जाता रहे तो भी वह श्रेणी रिक्त नहीं होती। इसी प्रकार जयंती ! ऐसा कहा जाता है कि सब भवसिद्धिव जीव सिद्ध होंगे किंतु लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा। यहाँ सभी भवसिद्धिक जीवों के सिद्धत्व पाने की जो बात कही गई है, उसका आशय यह है कि उनमें सिद्ध होने की स्वाभाविक योग्यता है। वे सिद्ध होते जाएंगे। यह क्रम चलता रहेगा। यह लोक उनसे कभी रिक्त नहीं होगा। भगवान् ने आकाश की श्रेणी का जो उदाहरण दिया है, उसका तात्पर्य यह है कि समग्न आकाश की श्रेणी अनादि-अनंत है। वह कभी खाली नहीं होती। चाहे कितने ही काल तक उसके एक-एक परमाणु जितने अंश प्रति समय निकाले जाते रहें। यही तथ्य मोक्ष जाने वाले भवसिद्धिक जीवों के साथ जुड़ा है। यहाँ इतना और ज्ञातव्य है कि भवसिद्धिक जीवों में सिद्धत्व पाने की योग्यता है पर योग्यता के साथ-साथ संयोग और निमित्त की भी आवश्यकता है। वह योग्यता तभी फलित होती है, जब वैसा | निमित्त प्राप्त हो। उदाहरण के लिये एक पाषाण को लें, उसमें मूर्ति बनने की योग्यता है किंतु वह योग्यता तभी | ASHTRANS News १. व्याख्याप्रज्ञप्ति-सूत्र, शतक-१२, उद्देशक-२, सूत्र-१६, १७, पृष्ठ : १३०-१३२. 191 JASTI म L AN NATA
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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