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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
सिद्धों के सोपचयादि का निरूपण
गौतम भगवान् महावीर से प्रश्न करते है- क्या सिद्ध सोपचय ( उपचय सहित ) या वृद्धि सहित है?
क्या वे सापचय- अपचय सहित या हानि सहित है? क्या वे सोपचय सापचय है ? क्या वे निरूपचय- उपचय रहित तथा निरपचय- अपचय रहित है ?
भगवान् ने उत्तर दिया- गौतम सिद्ध सोपचय हैं । वृद्धि सहित हैं किन्तु सापचय-हानि सहित नहीं है वे सोपचय सापचय भी नहीं हैं, किन्तु वे निरूपचय-निरपचय हैं।
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पूर्व के जीवों में नए जीवों की जो उत्पत्ति होती है वे सोपचय कहलाते हैं। क्योंकि उत्पत्ति होने से वे बढ़ते हैं या उनकी वृद्धि होती है।
पूर्ववर्ती जीवों में से जब कतिपय जीव मर जाते हैं तो उनकी संख्या घट जाती है। उनमें हानि या कमी हो जाती है। तब वैसी स्थिति में वे सापचय कहलाते हैं। उत्पत्ति और मृत्यु जब एक साथ होती है, कुछ । जीव उत्पन्न होते हैं, कुछ मरते हैं। अर्थात् कुछ की वृद्धि होती है, कुछ की हानि होती है तब
वे सोपचय-सापचय कहलाते हैं 1
जिनमें न तो नए जीवों की उत्पत्ति होती है, न मरण ही होता है अर्थात् न वृद्धि होती है और न हानि होती है। वैसी स्थिति में वे निरूपचय-निरपचय कहलाते हैं।
इस व्याख्या के 'अनुसार सिद्ध- सिद्धी प्राप्त जीव सोपचय है, क्योंकि नए जीव आगे सिद्धि प्राप्त करते रहते हैं। इस प्रकार उनमें वृद्धि होती है।
सिद्धि प्राप्त जीवों में किसी का मरण या नाश नहीं होता। इसलिए वे सापचय नहीं हैं । सिद्ध | सोपचय - सापचय नहीं है । अर्थात् एक साथ में उपचय या अपचय नहीं होता। इसलिये वे एक साथ निरुपचय-निरपचय कहे गये हैं।
सिद्ध जीवों की गति
गीतम भगवान् महावीर से प्रश्न करते है भगवन्! क्या अकर्म-कर्म रहित जीव की गति प्रज्ञप्त कही गई है ? स्वीकार की गई है ?
भगवान् गौतम को उत्तर देते है कि कर्म रहित जीव की गति होती है, ऐसा माना गया है।
१. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक- ५, उद्देशक- ८, सूत्र- २३.
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