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________________ णमो सिद्धार्थ पद समीक्षात्मक परिशीलन गौतम ने पहला प्रश्न यह किया कि भगवन्! अतीत में बीते हुए अनंत शाश्वत काल में छद्मस्थ- ज्ञानावरण युक्त मनुष्य केवल संयम, संवर, बह्मचर्यवास तथा अष्ट-प्रवचन माता के पालन से सिद्ध हुए है ? यहाँ सिद्धपद के साथ-साथ बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत तथा सर्वदुःखों का अंत करने वाले पद भी ग्राह्य हैं। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर ने कहा- यह अर्थ समर्थ नहीं है, जैसा तुम कहते | हो- वैसा घटित नहीं होता। इस पर गणधर गौतम भगवान् से ऐसा न होने का कारण पूछते हैं । इस पर भगवान् उन्हें बतलाते हैं- गौतम! जो भी कोई मनुष्य अपने कर्मों का नाश करने वाले तथा चरम शरीरी हुए हैं अथवा समस्त दुःखों का जिन्होंने विनाश किया है, करते हैं या करेंगे, वे सब केवलज्ञान केवलदर्शन से युक्त अर्हत् जिन तथा सर्वज्ञ होने के पश्चात् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिर्वृत हुए हैं तथा । | उन्होंनें सर्वदुःखों का अंत किया है-- वे ही ऐसा करते हैं तथा भविष्य में करेंगे, इसलिए मैंने तुम्हें यह बतलाया हैं। इस प्रश्नोत्तर की गहराई में जाने पर ऐसा ज्ञात होता है कि मनुष्य कितना ही उच्चस्तर के संयम का पालन करे, वह प्रमत्त संयत गुणस्थान से आगे बढ़ता हुआ चाहे बारहवें उपशांत मोह गुणस्थान तक भी पहुँच जाए किन्तु जब तक ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय के क्षय से केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक वह सिद्धत्व प्राप्त नहीं कर सकता । आगे के तीन सूत्रों में उपर्युक्त विवेचन के संबंध में विशेष चर्चा हुई है । कहा गया है कि जैसे पहले बारहवें सूत्र में अतीत काल की चर्चा की गई है, वर्तमानकाल में भी इसी प्रकार ज्ञातव्य है । वर्तमान काल में सिद्ध होते हैं, ऐसा विशेष रूप से जोड़ना चाहिये । भविष्यकाल में भी इसी प्रकार ज्ञातव्य है । वहाँ अंतर यह है कि सिद्ध होंगे, ऐसा जोड़ना चाहिए।' जैसा छद्मस्व के संबंध में कहा गया के संबंध में कहा गया है, वैसे ही अवधिज्ञानी और परमावधिज्ञानी के संबंध में जानना चाहिए। उनके तीन-तीन आलापक वक्तव्य जोड़ने चाहिये । गौतम पुनः भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं भगवन् ! क्या बीते हुए अनंत शाश्वत काल में। 1° १. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, प्रथम-संह, प्रथम शतक, उद्देशक- ४, सूच-१२ पृष्ठ: ८०. २. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक - १, उद्देशक- ४, सूत्र - १३, पृष्ठ ८८. ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति - सूत्र, शतक - १, उद्देशक- ४, सूत्र - १४, पृष्ठ ८८. ४. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक - १, उद्देशक- ४, सूत्र - १५, पृष्ठ : ८८. 177
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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