________________
णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
आचारांग में आगे परमात्मस्वरूप का, सिद्धत्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि न वह दीर्घ-प्रलंब, न वह हस्व-छोटा, न वृत्त- गोलाकार, न वह त्रिकोण, न चतुष्कोण तथा न वह वर्तुलाकार ही है।
इसी प्रकार न वह कृष्ण, न नील, न रक्त, न पीत, न श्वेत ही है। न सुरभित, न असुरभित ही है। न तिक्त, न कटु, न कषाय, न आम्ल तथा न मधुर रस से युक्त है। इसी प्रकार कर्कशता, मृदुता, गुरुता, लघुता, शीतलता, ऊष्णता, स्निग्धता तथा रुक्षता से समायुक्त नहीं है।
ये स्थितियाँ तो उनके साथ होती हैं, जो सशरीर होते हैं, सिद्ध इनसे अतीत हैं। वे लिंग-भेद से विवर्जित हैं। वे परिज्ञा, संज्ञा तथा चैतन्य से युक्त है। सांसारिक पदार्थों को तो सादृश्य के आधार पर | उपमाओं द्वारा व्याख्यात किया जा सकता है। किन्तु सिद्धों पर वह व्याख्या-क्रम घटित नहीं होता।
सूत्रकृताग-सूत्र में मोक्ष की महत्ता-सिद्धत्व की गरिमा
द्वितीय अंग- आगम सूत्रकृतांग-सूत्र में एक स्थान पर निर्वाण की गरिमा का विवेचन करते हुए लिखा है-जैस अनेक नक्षत्रों में चंद्रमा अपने सौंदर्य, सौम्यत्वादि गुणों के कारण प्रधान- सर्वोत्तम है, उसी प्रकार उन ज्ञानी पुरुषों के लिए, जो मोक्ष को ही परम साध्य मानते हैं, निर्वाण- सिद्धावस्था सर्वोत्तम है, वही परमपद है।
अत: मुनि-संयमी-साधक-सदायत-यतनाशील, आत्म जागरूक एवं दांत- दमनशील, जितेंद्रिय रहता हुआ निर्वाण का संधान करे- सिद्धत्व को अपना लक्ष्य मानता हुआ उस ओर प्रवृत्त रहे।
जो प्राणी इस जगत् में मिथ्यात्व, मोह, कषायादि के प्रवाह में बहे जा रहे हैं, अपने कृत कर्मों के | परिणामस्वरूप संक्लेश पा रहे हैं, उनके लिए जिनेश्वर देव ने निर्वाण के पथ को उत्तम द्वीप-विश्राम का स्थल बतलाया है। ज्ञानी महापुरुष कहते हैं कि भवभ्रमण से परिश्रांत प्राणियों के लिए वही प्रतिष्ठान विश्रांति का स्थान है।
जो आत्मगुप्त-मानसिकं, वाचिक, कायिक उत्तम प्रवृत्तियों द्वारा आत्मा को पाप से गुप्त या रक्षित रखता है, सदैव विकारों का, इंद्रियों का दमन करता है, उनके वशमें नहीं होता, जो छिन्न स्रोत हैमिथ्यात्व आदि संसार के स्रोतों-जगत् में पुन:-पुन: आवागमन के हेतुओं को छिन्न करने की दिशा में उद्यत है, जो अनानव है- आस्रव निरोध की ओर प्रयत्नशील है, वह इस शुद्ध, सर्व दोष-विवर्जित, प्रतिपूर्ण- समग्रता युक्त तथा अनादश- अनुपम या अप्रतिम निर्वाण पथ का-मोक्ष मार्ग का या सिद्ध पद का आख्यान करता है, उपदेश करता है। १. आचारांग-सूत्र, प्रथमश्रुतस्कंध, पंचम-अध्ययन, उद्देशक-६, सूत्र - १७६-१८९. २. सूत्रकृतांग-सूत्र, प्रथमश्रुतस्कंध, अध्ययन - ११, गाथा - २२ - १४, पृष्ठ : ३९४.
153
HE
REMES
PANSAR