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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन । प्राप्त आत्माओं को वह भय नहीं होता। अत: सिद्धि का सुख अव्याबाध है। जैसे बीज के जल जाने पर अंकुर उत्पन्न नहीं होता, उसी प्रकार कर्मबीज के दग्ध हो जाने पर जन्म रूप अंकुर उत्पन्न नहीं होता। जहाँ जन्म नहीं है, वहाँ जरा या मृत्यु का भय होता ही नहीं।"१ “नव तत्त्वों में मोक्ष तत्त्व अन्तिम तत्त्व है। वह जीवमात्र का चरम और परम लक्ष्य है। जिसने समस्त कर्मों का क्षय करके अपने साध्य को सिद्ध कर लिया, उसने पूर्ण सफलता प्राप्त कर ली। कर्मबन्धन से मुक्ति मिली कि जन्म-मरणरूप महान् दु:खों के चक्र की गति रुक गई। सदा-सर्वदा के लिए सत्-चित्-आनंदमय स्वरूप की प्राप्ति हो गई।"२ मुक्तत्व- सिद्धत्व या शुद्धात्म-भाव के सन्दर्भ में निम्नांकित तथ्य ध्यातव्य हैं “भोग्य पदार्थों पर आसक्ति-भाव के त्याग से तथा हिंसा, क्रोधादि से विरत होने पर मन और इन्द्रियों पर संयम स्थापित होता है। संयम का सीधा और प्रत्यक्ष परिणाम आत्मिक शांति है। संवर से पापों या आसवों का निरोध, उनसे तष्णानाश और फिर क्रमश: आत्मा मुक्तावस्था को प्राप्त करने में समर्थ बन जाती है।” “परमार्थ-मार्ग की प्राप्ति का मूल आधार- वैराग्य तथा उपशम है। अथवा सम्यक्दशा के पाँच लक्षण- शम, संवेग, निर्वेद, आस्था और अनुकंपा को जीवन में उतारना है।" __"मोक्ष या निर्वाण-प्राप्ति के लिए ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना की जाती है। उनमें णमोक्कार की मुख्यता है। यदि णमोक्कार की आराधना न हो तो ये समस्त आराधनाएँ कुछ भी फल नहीं दे सकती।"५ उपाध्याय श्री केवलमुनि जी 'महामंत्र नवकार' नामक पुस्तक में सिद्धों के ध्यान की फलवत्ता के संबन्ध में लिखते हैं- "सिद्ध परमात्मा के ध्यान में मुख्यत: उनके आनन्दमय, पूर्ण आरोग्यमय, अव्याबाध- बाध रहित स्वरूप का चिन्तन किया जाता है और इस चिन्तन से आनंद प्राप्त होता है, रोग मिटते हैं, बाधाएँ दूर होती हैं, कार्य सिद्ध होते हैं, यह प्रत्यक्ष अनुभव की बात है।" __ "वासनाक्षय पूर्वक चित्तनाश होने का नाम मोक्ष है। अनात्मा के स्थान पर आत्मबुद्धि तथा आत्मा के स्थान पर अनात्मबुद्धि एतद्रूप अज्ञान तज्जनित चिदचिद्-ग्रंथि-चिज्जड़-ग्रंथि का नाश होने से मोक्ष प्राप्त होता है।" SION १. धर्मश्रद्धा, पृष्ठ : ८८. ३. पच्चक्खाण क्यों और कैसे ? पृष्ठ : ११. ५. नमस्कार-मंत्र सिद्धि, पृष्ठ : १२. ७. नामचिन्तामणि, पृष्ठ : १३६. २. जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृष्ठ : २२४. ४. निर्वाणमार्गर्नु रहस्य, पृष्ठ : ३१. ६. महामंत्र नवकार, पृष्ठ : ३३. 151 HASHA
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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