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________________ सिध्दपद और णमोक्कार-आराधना । एक अभय शांति क्तिक व में शखर । का त्साह को को तेयों इन पक्षों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। एक वह भाव है- जिसका संबंध आत्मा के परम कल्याण या चरम श्रेयस् के साथ जुड़ा हुआ है। वह सर्वथा आध्यत्मिक है। वहाँ भौतिक अभीप्साओं और उपलब्धियों का कोई स्थान नहीं है। वह तो संवर निर्जरामय साधना के साथ संलग्न है। कार्मिक आवरणों के निरोधमूलक संवर के लिये जिन प्रबल आत्म-परिणामों की आवश्यकता होती है, णमोक्कार महामंत्र के जप, ध्यान तथा अभ्यास द्वारा वह उपलब्ध होती है। पुन:-पुन: संसार-सागर में परिभ्रमण कराने वाला कर्म-प्रवाह अवरूद्ध हो जाता है, जो आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उपलब्धि है। साथ ही साथ महामंत्र की आराधना से एक ऐसी आंतरिक ऊर्जा का जागरण होता है, जिससे साधक को तपश्चरण में आनंदानुभूति होने लगती है। चिरकाल से लिप्त कर्म-मल धुलता जाता है- यह दूसरी आध्यात्मिक उपलब्धि है। जिसका उल्लेख आगमों में, आगमगत अनुयोगों में, मंत्रशास्त्रों में, योगशास्त्र में तथा कर्मग्रंथों में हुआ है। इन दोनों आध्यात्मिक उपलब्धियों से वह परमोत्कृष्ट परिणाम प्रस्फुटित होता है, जिसके लिये अनंतकाल से जीव व्याकुल है। दार्शनिक भाषा में जीव को सिद्धत्व, मुक्तत्व प्राप्त हो जाता है, जिससे बढ़कर इस त्रैलोक्य में कोई भी उपलब्धि नहीं है। णमोक्कार मंत्र का यह महत्तम लाभ है। * दूसरा भाग ऐहिक या लौकिक है, जिसका संबंध सांसारिक उन्नति, समृद्धि-संपत्ति, सुख इत्यादि के साथ संलग्न है। इन सभी की प्राप्ति के हेतु शुभ-कर्म हैं । यद्यपि णमोक्कार महामंत्र का परम लक्ष्य कर्मावरणों को तोड़ना है, पर साधना काल में ज्यों-ज्यों रागादि भव हल्के पड़ते जाते हैं- अप्रशस्त से प्रशस्त बनते जाते हैं, त्यों-त्यों पुण्य-प्रकृतियों का बंध होता जाता है। यद्यपि साधक का यह लक्ष्य नहीं होता, पर वे प्रासंगिक रूप में बंधती है, जिनके फलस्वरूप सांसारिक अनुकूलताएं, जिन्हें सुख कहा जाता है, प्राप्त होती हैं। सांसारिक सख, वैभव आदि की प्राप्ति के दो प्रकार के परिणाम होते हैं। मिथ्या-दष्टि परुष उन्हें प्राप्त कर नितांत भोगोन्मुख जीवन अपनाते हैं। सम्यग्-दृष्टि पुरुष उनमें विमूढ़ नहीं बनते। वे उनका सात्त्विक कार्यों में उपयोग करते हैं। यदि सद्बुद्धि और सदुद्देश्य हो तो संपत्ति विकार का हेतु नहीं बनती। वह सांसारिक सुविधा देते हुए जीवन को सात्त्विक बनाने में सहायता करती है। _ णमोक्कार मंत्र का आराधक उसी कोटि का व्यक्ति होता है। भौतिक उपलब्धियाँ भी उसको आध्यात्मिक दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। इस प्रकार वह आगे बढ़ता-बढ़ता आध्यात्मिक मार्ग स्वीकार कर लेता है तथा मोक्षमार्ग का पथिक बन जाता है। यह णमोक्कार मंत्र का अद्भुत प्रभाव है। 148 HEARNER
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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