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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन पहुँचाने का आत्मा का शुद्धस्वरूप स्वायत्त कराने का माध्यम है। 7 1 चराचर या स्थावर जंगमात्मक विश्व की दृष्टि से भी णमोक्कार मंत्र के आराधन का एक विलक्षण प्रभाव है । जो इस महामंत्र की आराधना करते हैं, वे अपनी ओर से समस्त प्राणियों को अभय | प्रदान करते हैं । प्राणातिपात या हिंसा से पृथक् रहते हैं, सदा समग्र संसार के प्राणियों की सुखशांति की कामना करते हैं। प्रत्युपकार या प्रत्याशा के बिना वे उस दिशा में प्रयत्नशील रहते हैं । वैयक्तिक दृष्टि से भी यह महामंत्र आराधक के लिए उन्नतिप्रद है। साधक बाह्य साधन सामग्री के अभाव में। भी इस मंत्र की प्रेरणा से मानसिक बल प्राप्त करता है। वह इसके द्वारा उन्नति के सर्वोत्कृष्ट शिखर पर पहुँचने में सक्षम होता है । सामाजिक उन्नति की अपेक्षा से यह महामंत्र सभी को एक समान आध्यात्मिक आदर्शों का उपासक बनाता है। सत् श्रद्धा, सद्-ज्ञान तथा सत् चारित्र के शुद्ध पथ पर अविचल रहने का उत्साह और बल प्रदान करता है । अनिष्ट निवारण या विघ्नों की निवृत्ति की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र का स्मरण अशुभ कर्मों को रोकता है। शुभ कर्मों के विपाकोदय को अनुकूल बनाता है। उसके परिणामस्वरूप प्राप्त सुखों को उपस्थापित करता है। इस महामंत्र के प्रभाव से समग्र अनिष्ट स्थितियाँ, विपरीतताएं इष्ट स्थितियों में, अनुकूलताओं में परिणत हो जाती हैं। जंगल में मंगल हो जाता है। भंयकर सर्प पुष्पमालाओं में परिवर्तित हो जाते हैं । ऐहिक इष्ट-सिद्धि की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र की आराधना के फलस्वरूप दैहिक - शक्ति, बुद्धि, मनोबल, आर्थिक वैभव, राज्यसत्ता, लौकिक संपत्ति, ऐश्वर्य, प्रभाव ये सब प्राप्त होते हैं। क्योंकि यह महामंत्र, चित्त की मलिनता और दूषितता को दूर करता है एवं मानसिक निर्मलता और उज्ज्वलता को प्रगट करता है। जब चित्त में निर्मलता आ जाती है तो पुण्य प्रभाववश सभी प्रकार की उन्नति होती | सार-संक्षेप प्रस्तुत शीर्षक के अंतर्गत विविध पक्षों को लेते हुए णमोक्कार महामंत्र की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है। यहाँ आगम, योग, मंत्र, कर्म-साहित्य, आगमगत अनुयोग, आध्यात्मिक दृष्टि, आत्मकल्याण, आत्माभ्युदय, संघ- हित, व्यक्ति उत्थान, सामाजिक- श्रेयस् चराचर समस्त विश्व के कल्याण, दुःखनिवृत्ति, विघ्ननाश, सुख प्राप्ति आनुकूल्य इत्यादि विविध दृष्टिकोणों को लेते हुए विश्लेषण किया गया है। णमोक्कार महामंत्र' की ऐसी गरिमा है कि वह इन सबकी कसौटी पर खरा उतरता है। १. परमेष्ठि नमस्कार, पृष्ठ : ८४-८६. 147
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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