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सिध्दपद और णमोक्कार-आराधना
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कर देव
शास्त्र-निरूपित्त कर्म-साहित्य की दृष्टि से णमोक्कार महामंत्र का अनुपम महत्त्व है। णमोक्कार
के एक-एक अक्षर की प्राप्ति तभी होती है, जब अनंतानंत कर्म पुद्गल विध्वस्त होते हैं तथा इस महामंत्र के एक-एक अक्षर के उच्चारण से कर्म-पुद्गलों का विनाश होता जाता है।
ऐहिक- सांसारिक दृष्टि से भी णमोक्कार मंत्र के पुण्यार्जनमूलक परिणामस्वरूप प्रशस्त अर्थ भारोग्य सख इत्यादि की प्राप्ति होती है तथा उसके अभ्यास द्वारा चित्त में प्रसन्नता का आविर्भाव होता
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पारलौकिक दृष्टि से यह मंत्र मोक्ष का हेतु है। जब तक मोक्ष प्राप्त न हो सके तब तक यह उत्कष्ट देवलोक तथा प्रशस्त-मनुष्य-भव और उत्तमकुल आदि की प्राप्ति कराता है। परिणामस्वरूप जीव स्वल्पकाल में बोधि प्राप्त करता है। साधना या समाधि-पथ पर आरूढ़ होता है। अंतत: सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
अनुयोग के रूप में विभाजित आगमों के अंतर्गत 'द्रव्यानुयोग' की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र का पहला और दूसरा पद आत्मा का शुद्धस्वरूप है। उन दोनों के पश्चाद्वर्ती आचार्य, उपाध्याय और साध- ये तीन पद शुद्ध स्वरूप की साधक-अवस्था के प्रतीक हैं। _ 'चरणकरणानुयोग' के अनुसार इसका संबंध आचार के साथ जुड़ा हुआ है। श्रमण और श्रमणोपासक की समाचारी या व्रत-परंपरा के परिपालन में अनुकूल या विन-निवारण हेतु णमोक्कार मंत्र का पुन:-पुन: उच्चारण या जप अत्यंत आवश्यक है और उपयोगी है।
णमोक्कार मंत्र में पदों की संख्या नव है। गणितानुयोग की दृष्टि से गणित-शास्त्र में नव की संख्या अन्य संख्याओं की अपेक्षा अखंडता तथा अभग्नता का अभाव है। यह ऐसी संख्या है, जो नित्य नवाभिनव भावों को आविष्कृत करती है। नवकार की आंठ संपदाएं- अणिमा, महिमा, गरिमा आदि आठ सिद्धियों और अनंत संपदाओं को प्रदान करती है, सिद्ध करती हैं। - इस महामंत्र के अड़सठ अक्षर तीर्थ स्वरूप हैं, जो ध्याता को संसार-समुद्र से पार कराते हैं। णमोक्कार मंत्र के पदों का आवर्तन-परावर्तन चैतसिक स्थिरता का अमोघ हेत । 'धर्म कथानुयोग' की अपेक्षा से, जिसमें धार्मिक जीवन को उन्नत बनाने वाले कथानक होते हैं, णमोक्कार महामंत्र का बड़ा महत्त्व है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधुवंद के जीवन-चरितसबंधी अद्भुत कथाएं इसके साथ संलग्न हैं। जिन्होंने णमोक्कार की आराधना द्वारा समुन्नति की, उन जीवों की कथाएं भी पाठकों को आत्मोत्थान का मार्ग प्रदर्शित करती है। ये सात्त्विकता, धर्मानुरागिता आदि गुणों को पोषण देती हैं। श्रमण, श्रमणी, श्रमणोपासक, श्रमणोपासिका चतुर्विध-संघ की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र सब को एक आध्यात्मिक श्रंखला में जोड़ता है तथा सभी को एक ही स्तर पर
लंबन
विशद्
न है। सर्वत्र व का मागम
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