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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन । लोगों के स्वयं के पास भी तो ऐसी कोई दिव्य, महत्त्वपूर्ण, अविनश्वर वस्तु नहीं है, फिर वे हमें क्या दे सकते है? णमोक्कार महामंत्र एक ऐसा आध्यामिक दूरभाष है, जो हमारा अरिहंत परमेश्वर से-तीर्थंकर देव से सीधा संपर्क जोड़ता है । णमोक्कार द्वारा जुड़ने वाला यह सम्पर्क बहुत उच्चकोटि का है। जिनेश्वर देव के पास अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतबल तथा अनंतशक्ति इत्यादि के रूप में जो विराट् वैभव है, वह और किसी के पास नहीं है। वे महान् दानी हैं, उपासक को अपना सर्वस्व दे देते हैं किन्तु यह ऐसा सर्वस्व है, जिसके देने पर भी प्रदाता के कोई कमी नहीं आती। प्रदाता का आध्यात्मिक वैभवमय भंडार जरा भी रिक्त नहीं होता। णमोक्कार मंत्र-रूप टेलिफोन या दूरभाष से जुड़ने वाले संपर्क की महिमा का, उपादेयता का वर्णन नहीं किया जा सकता। इनसे सम्पर्क साधने वाले को वे अपने जैसा महान् बना देते हैं किन्तु सम्पर्क साधने वाले में तीव्र उत्कंठा, जिज्ञासा, तितिक्षा तथा मुमुक्षा का भाव अनवरत रहना चाहिए। इस भावधारा की पवित्रता साधक के आंतरिक कालुष्य को प्रक्षालित कर, उसे निर्मल एवं स्वच्छ बना देती है। उसकी चरम परिणति यह होती है कि उपासक उपास्य का पद पा लेता है। वह जन-जन का आराध्य बन जाता है। णमोक्कार महामंत्र का यह अनुपम वैशिष्ट्य है। णमोक्कार मंत्र की सर्व-सिद्धान्त-सम्मतता मंत्रशास्त्र की अपेक्षा से चिंतन किया जाय तो जिस प्रकार गारुडिक आदि के मंत्रों द्वारा सर्पादि का विष शांत, नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार णमोक्कार के प्रयोग एवं अभ्यास द्वारा पापरूपी विष नष्ट हो जाता है। योगशास्त्र में ध्यान के विवेचन में पदस्थ-ध्यान का वर्णन आया है, जहाँ पवित्र पदों का आलंबन लेकर ध्यान करने का निर्देश किया गया है। ज्ञानार्णव आदि योग विषयक ग्रंथों में भी इसका विशद् विवेचन हुआ है। पदस्थ-ध्यान को सिद्ध करने के लिये णमोक्कार महामंत्र के पदों का आलंबन अनन्य साधन है। आगम-वाङ्मय में ज्ञान तथा आचार के सन्दर्भ में जो बहुमुखी विवेचन हुआ है- उसमें सर्वत्र णमोक्कार महामंत्र का ही दर्शन व्याप्त है क्योंकि णमोक्कार महामंत्र में जिस अध्यात्म-उपलब्धि का चित्रण है, वही आगमों का विषय है। अत: णमोक्कार महामंत्र समग्र श्रुत में परिव्याप्त है। आगम १. योगशास्त्र, प्रकाश-१, श्लोक-८. २. ज्ञानार्णव, सर्ग-३८, श्लोक-१,२, 145
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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