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________________ मन में कोई लूटपाट, हत्या संचालन आदि तीक हैं। कोर्ट) तक जायपालिकाएं प्रकार उनको प्त है । ऐसा न्यायतंत्र का मंत्र तो एक इसमें कहीं टिका हुआ । जैसे एक नून के पास तंत्रज रा आत्मा TT अपराध है। जाए तो है किंतु गय उनके के कानून ज्जं जोगं सावद्य नातिशय, उत्तरोत्तर सिध्दपद और णमोक्कार-आराधना कर्म-क्षय करता हुआ, वह गुणस्थानों के सोपान क्रम से आगे बढ़ता हुआ अरिहन्त पद तक भी पहुँच सकता है । समग्र कर्म - क्षय करके सिद्ध बन सकता है । यह सब कर्मवाद के न्यायतंत्र पर टिका हुआ है । ये कर्मों की न्यायतंत्रीय प्रणाली के द्वारा अथवा कर्म सिद्धांतों के द्वारा ही 'पद' प्राप्त करते हैं । कोई किसी को दे नहीं पाता । इस प्रकार णमोक्कार मंत्र एक ऐसे महान् न्यायतंत्र का सूचक है, जिसका निर्णय त्रिकालाबाधित है। यह महामंत्र प्रत्येक जीव को कर्म सिद्धांतानुरूप कर्मक्षयपूर्वक अपनी ओर आने को आमंत्रित करता है । वैधानिक दृष्टि से णमोक्कार मंत्र की अपरिवर्तनीयता संसार में जितने भी संस्थान, प्रतिष्ठान, प्रजातंत्र, गणतंत्र आदि हैं, उन सबके अपने-अपने | विधान हैं। विधान के बिना किसी भी सामाजिक, राजनैतिक, प्रशासनिक या आर्थिक संस्थानों का कार्य सुचारू रूप से नहीं चल सकता । अतएव विधान का बहुत महत्त्व है । 1 णमोक्कार मंत्र भी एक आध्यात्मिक विधान का संसूचक है । संसार के सब प्रकार के विधानों के साथ यदि तुलना की जाए तो णमोक्कार मंत्र सर्वोत्कृष्ट और सर्वोपरि सिद्ध होता है। अन्य विधानों में समय-समय पर परिवर्तन करना पड़ता है क्योंकि वे सभी दृष्टियों से परिपूर्ण सिद्ध नहीं होते। जब | न्यूनता या कमी दृष्टिगोचर होती है, तब विधान में परिवर्तन, परिवर्द्धन करना आवश्यक हो जाता है । संसार के विभिन्न देशों में जो विधान हैं, उनमें भी परिवर्तन होते रहे हैं । वे अंतिम रूप से | परिपूर्ण और सर्वजनोपयोगी सिद्ध नहीं होते इसलिए व्यवस्थाओं में बाधाएं आती हैं। उनका निराकरण करने के लिये उन्हें बदलना पड़ता है । विभिन्न संस्थाओं के विधानों में भी यही बात लागू होती है। | क्योंकि वे भी संस्थाओं के लक्ष्यों को पूरी तरह पूर्ण करने में और सबके लिए उनकी उपयोगिता सिद्ध | करने में सर्वथा सफल सिद्ध नहीं होते हैं । इसका कारण यह है कि जिन्होंने विधान की रचना की, | उनका ज्ञान समग्र दृष्टियों से पूर्ण नहीं होता, वह अपूर्ण होता है । अपूर्ण ज्ञान के सहारे जो सर्जन होता है, वह पूर्ण कैसे हो सकता ? संस्थाओं के तथा राष्ट्रों के विधानों में जितने परिवर्तन हो चुके हैं, वे पर्याप्त नहीं है । आगे और परिवर्तन न हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता । णमोकार मंत्र का विधान ऐसा नहीं है । न उसमें आज तक किसी अक्षर मात्र का भी परिवर्तन | हुआ है, न होगा। वह एक ऐसा विधान है, जिसे त्रिकाल सत्य कहा जा सकता है। अनंत तीर्थकर भगवंत, गणधर देव तथा अनंत महापुरुष हो गए हैं किंतु णमोक्कार मंत्र का विधान अति विशुद्ध होने के कारण आज तक अपरिवर्तित है। 134
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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