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सिध्दपदा और णमोक्कार-आराधना
प-शास्त्र संबंध में
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णमोक्कार मंत्र लौकिक-ज्योतिष से विलक्षण एक ऐसे आध्यात्म-ज्योतिष का प्रतीक है, जहाँ जीव अतीत, वर्तमान और भविष्य की समग्र विसंगतियों से विमुक्त हो जाता है। जब त्रैकालिक दर्शन, ज्ञान संप्राप्त रहता है। तब लौकिक-ज्योतिष की परिधि बहुत पीछे रह जाती है।
की गति, -विषयक
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साहित्य रा रचित
'ज्ञान के भगवान्
नो केवल
जन्मांतरों तिषी का
वहाँ ग्रह, मुटि-पूर्ण था नहीं
गणितशास्त्र के अनुसार णमोक्कार की महत्ता, परिपूर्णता
धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र, विज्ञान, व्यवसाय, उद्योग आदि सभी के व्यवस्थित, नियमित विकास और प्रसार में गणितशास्त्र की अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
जैन आगम में यह विषय गणितान्योग के नाम से समाविष्ट है, जिसमें काल-गणना, नक्षत्र-गतिगणना, पुद्गल-परमाणु के भेद-प्रभेद इत्यादि सभी का गणना क्रम, संख्यात, असंख्यात एवं अनंत के रूप में व्याख्यात हुआ है। पल्योपम, सागरोपम आदि उसके अंतर्गत आते हैं। यह अध्ययन का एक स्वतंत्र विषय है।
आज का विज्ञान तो मुख्यत: गाणितेय तत्त्वों पर टिका हुआ है। गणितशास्त्र की दृष्टि से यदि णमोक्कार मंत्र पर चिंतन किया जाय तो उसकी महत्ता और पूर्णता सिद्ध होती है। गणितशास्त्र मुख्यत: गणन और विभाजन के सिद्धांत (Law of Multiplication and Law of Division) पर आधरित है। इनके अतिरिक्त गणित में जोड और बाकी दो पक्ष और हैं। 1 णमो अरहिताण के स्मरण मात्र से गणितशास्त्र के चारों सिद्धांत उत्कृष्ट प्रकार से घटित होते हैं। पुण्य का जोड़, पाप की बाकी, कर्म का भागाकार और धर्म का गुणाकार एक णमो अरिहंताणं' के स्मरण से हो जाता है।
जैन शास्त्रानुसार एक जीव पाँच सौ सागरोपम तक नरक गति में रहकर जितने पाप-कर्म-क्षय करता है, उतने पाप एक णमोक्कार के स्मरण से खपते हैं, नष्ट होते हैं।
णमो अरिहंताणं के स्मरण मात्र से धर्म का गुणाकार और कर्म का भागाकार अनुभव किया जाता है। णमो अरिहंताणं कहते ही भूतकाल, वर्तमान काल, भविष्यकाल में जगत् के परम उद्धारक सभी तीर्थंकरों को नमस्कार हो जाता है और धर्म का गुणाकार और कर्म का भागाकर हो जाता है। सभी संपत्तियों का सर्जन और विपत्तियों का विसर्जन हो जाता है।
णमो पद से सर्व दुष्कृत की गर्दा (Rejection of Wrongness) होती है और अरिहंताणं पद से महान् सुकृत की अनुमोदना (Appreciation of Righteousness) होती है, दृष्कृत की गर्दा और सुकृत की अनुमोदना की नींव पर शरण गमन (Surrender to Supremacy) होते ही आत्मस्वरूप का अनुभव होने लगता है। णमोक्कर मंत्र सर्व सिद्धियों का केंद्र और नवनिधान स्वरूप है।
तीत है, बनता। हते हैं। से प्रविष्ट
ता है। Human गाओं से नुप्राणित मोती है।
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MARDAN