SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - SHARE MASTARRAESE NASAURAHAN CICIRTANT TETRONARIES ANSAR SEL EVATARRESEARN BON INSARAN SAT HEReal No णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन NOMINARDARSHANK winititioneralIRSAMROHABAR A R ENTICHRIReveadios ISROENING HISTAR A THIमारलपरासतमा Mainionsani nindeanIyenisoning और भविष्य जुड़ा हुआ है, वह यद्यपि सामान्य ज्ञान द्वारा नहीं जाना जा सकता किंतु ज्योतिष-शास्त्र एक ऐसी विद्या प्रस्तुत करता हैं, जिसके माध्यम से यदि सही गणना हो, तो तीनों कालों के संबंध में एक सीमा तक यथेष्ट जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसे निमित्तशास्त्र भी कहा जाता है। | गणित और फलित रूप में ज्योतिष के दो भेद हैं। गणित-ज्योतिष का ग्रह, नक्षत्र आदि की गति. स्थिति, परिणति इत्यादि के साथ संबंध है। फलित-ज्योतिष द्वारा अतीत, वर्तमान एवं भविष्य-विषयक फलादेश प्रगट किया जाता है। जैन वाङ्मय में चतुर्दश पूर्वो में ज्योतिष शास्त्र विषयक गहन विवेचन हुआ है। वह साहित्य आज हमें प्राप्त नही है। आचार्य भद्रबाहु ज्योतिष-शास्त्र के बहुत बड़े विद्वान् थे। उन द्वारा रचित साहित्य आज प्रामाणिक रुप में प्राप्त नहीं है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र पर विचार करें। ज्योतिष विद्या द्वारा प्राप्त ज्ञान के आधार पर ज्योतिषी, जो घोषित करते हैं, णमोक्कार मंत्र के प्रथम पद में अवस्थित अरिहंत भगवान द्वारा भूत, भविष्य, वर्तमान विषयक अभिव्यक्ति उससे अनन्तगुण महत्त्वपूर्ण है। ज्योतिषी तो केवल थोड़े से अतीत और भविष्य की बात कहते हैं, अरिहंत अपने सर्वज्ञत्व के बल पर अनेक जन्म-जन्मांतरों का इतिवृत्त, इतिहास बतलाने में सक्षम होते हैं। उनके उस दिव्य-ज्ञान की तुलना में ज्योतिषी का ज्ञान नगण्य है। दूसरी बात यह है कि ज्योतिषी द्वारा ज्ञात तथ्य अन्यथा भी सिद्ध हो सकते हैं क्योंकि वहाँ ग्रह, । राशि, मुहूर्त, योग आदि की गणना मे त्रुटि भी हो सकती है। त्रुटि होने से फलादेश भी त्रुटि-पूर्ण हो सकता है। सर्वदर्शी, सर्वज्ञानी, तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित त्रिकालविषयक तथ्य कभी अन्यथा नहीं होते क्योंकि उनके ज्ञान को आवत करने वाले कर्मों का सर्वथा क्षय हो चुका है। द्वितीय सिद्ध पद है, जो साधक के जीवन का अंतिम साध्य है। वह परमानन्दमय है, देहातीत है, योग विवर्जित हैं। इसलिए उन द्वारा कुछ कहे जाने, घोषित किये जाने का प्रसंग ही नहीं बनता। उत्तरवर्ती तीन पद साधु जीवन से संबद्ध हैं, जो महाव्रतानुगत साधना मे संलग्न रहते हैं। साधक जब परमात्मा के ध्यान में तन्मय होते हैं, मन के निम्न स्तर को छोड़कर उच्च स्तर मे प्रविष्ट हो जाते हैं, तब उसके समक्ष भूतकाल और भविष्य काल का ज्ञान स्वत: प्रकटित हो जाता है। मनोविज्ञान की भाषा मैं इसे beyond human mind में प्रवेश कहा जाता है। मानव-मन (Human mind) तब दिव्य-मन (Divine mind) के रूप में परिणत हो जाता है। दिव्य मन जब एषणाओं से सर्वथा असंपृक्त हो जाता है, तब उसकी गति आध्यात्म के अंतर्जगत् में होती है। वह परमात्मभावानुप्राणित परिणामों की धारा में प्रवहनशील हो जाता है, जिसकी चरम परिणति सिद्धत्व में परिघटित होती है। S THARASHTRA Evevsaeschoka । | SAHARE SHESARIS an RAJA ASEANELATEही R ecommonaliKARE TATE HARASHTRA । 121 H 0
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy