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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
इस प्रकार णमोक्कार मंत्र Mathematically Mature है क्योंकि उससे पाप का विनाश और का प्रकर्ष (Elimination of evils and Sublimation of good towards supremacy) होता है । पु. यहाँ गणित की गुणाकार शैली सिद्ध होती हैं। दो संख्याओं का आपस में गुणन या गुणाका करने से गुणनफल उतना ही गुणा अधिक हो जाता है।
उदाहरणार्थ सात के साथ यदि सात का गुणाकार किया जाए तो गुणन फल उनपचास होता है। उसी प्रकार तीर्थकरों के अनंत गुणों का, पावन कृत्यों का स्मरण करने से, उनका अनुमोदन करने से, उनके उन अनंत गुणों से अनंत गुणा पुण्यात्मक फल प्राप्त होता है।
तीर्थंकरों के सुकृतों या गुणों के अनुमोदन से कर्मों का विभाजन या भागाकार सिद्ध होता है। जहाँ एक संख्या को दूसरी संख्या द्वारा विभाजित किया जाता है या भागाकार किया जाता है तब जो भाग फल आता है, वह विभाजन संख्या के अनुरूप उतना ही कम आता है ।
उदारणार्थ सी को बीस से विभाजित किया जाए या जिसका भाग दिया जाय तो भाग फल पाँच | होगा। यह विभाजन संख्या के अनुसार सौ की संख्या को पाँच की संख्या में परिणत कर देने का प्रकार है।
उसी प्रकार तीर्थंकरों की सुकृतों की अनुमोदना द्वारा कर्मों का विभाजन या भागाकार सिद्ध हो जाता है । कर्म उसी प्रकार कटकर, निर्जीर्ण होकर कम हो जाते हैं, जिस प्रकार सौ की संख्या पाँच हो जाती है।
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सुकृत- अनुमोदना का यह क्रम ज्यों-ज्यों उत्तरोत्तर गतिशील रहता है, त्यों-त्यों अनुमोदन करनेवाले के सुकृतों में और सुकृत जुड़ते जाते हैं । इससे गणित की योग या जोड़ की पद्धति सिद्ध होती है ।
जैसे यदि सौ में ओर सौ जुड़ जाएं तो दोनों मिलकर दो सौ बन जाते हैं, उसी प्रकार | अनुमोदन - कर्ता के पुण्यों में और पुण्य जुड़ते जाते हैं, संपत्तियाँ अधिकाधिक बढ़ती जाती हैं ।
सुकृत- सावन, अनुमोदना द्वारा कर्मों का विभाजन होने से या भागाकार द्वारा प्राप्त भागफल के रूप में जो कमी होती है, वह और भी कम हो जाती है, जब वह अनुमोदन आगे गतिशील रहता है। यहाँ गणित का शेष निकालने का या बाकी का सिद्धांत फलित होता है । अर्थात् संचित कर्म, जो | निर्जरण द्वारा कम हुए थे, पुनः अनुमोदनाजनित निर्जरण द्वारा और कम हो जाते हैं ।
जैसे सौ की संख्या में से तीस को कम करे तो सत्तर की संख्या बाकी रहती है, जिसे गणित में
१. जीवन की सर्वश्रेष्ठ कला श्री नवकार, पृष्ठ : १३ - १५.
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