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________________ प्र BARSEAN पामो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक परिशीलन या NJABANDALA वासवरmuTuumentatanipaalandicatinidobalralIAS H moomysaiantetaIRIT भावना-शुभ और अशुभ दो प्रकार की होती है। कुसंस्कार-युक्त लोगों के मन में सहज रूप में पापमूलक भावनाओं का उद्भव होता है, जिनमें हिंसा, परिग्रह, वासना आदि निहित होते हैं। सुसंस्कारी जनों के मन में शुभ-भावनाएँ होती हैं, जिनमें सात्विकता, उदारता, सहिष्णुता आदि भाव रहते हैं। जो व्यक्ति भावना के उदित होने के समय जागरूक रहता है। वह अपने आप पर नियंत्रण करने का सामर्थ्य अर्जित कर लेता है। जैसे ही मन में बुरे भाव उठने लगते हैं, वह अच्छे भावों के उद्वेग द्वारा उनको रोक देता है। मन में शुभ और अशुभ का या सत् एवं असत् का एक संघर्ष चलता है। आंतरिक जागरूकता, स्वस्थता और प्रमाद-शून्यता के कारण शुभ-भाव प्रबलता पाते हैं तथा वह अशुभ-भाव को पराजित कर देता है। ___ इस दिशा में मनुष्य में उत्कर्ष जगाने हेतु भावनाओं का एक मार्ग जैन धर्म में बताया गया है, जिसे 'भावना-योग' भी कहा जाता है। उसका लक्ष्य मानव को उत्तम भावनाओं के साथ जोड़ना है। । एकत्व, अन्यत्व आदि बारह भावनाओं का वहाँ चित्रण किया गया है। उत्तम भावों के नवनीत के रूप में चार भावनाओं- मैत्री, प्रमोद कारूण्य और माध्यस्थ का विशेष रूप से उल्लेख हुआ है। इनमें आर्हत् (जैन) दर्शन का सार समाविष्ट है। इनके संबंध में आचार्य अमितगति का निम्नांकित श्लोक बहुत प्रचलित है। सत्त्वेषु मैत्री गुणिपु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । माध्यस्थ भावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विद्धातु देव ।। साधक प्रभु से यह प्रार्थना करता है कि भगवन् ! मुझ में इतनी भावात्मक उत्कृष्टता का विकास हो कि मेरी आत्मा में सभी प्राणियों के प्रति मैत्री का भाव रहे। जब मैं सद्गुण संपन्न श्रेष्ठ जनों को-- सत्पुरुषों को देखें, तब मेरे मन में अत्यंत आनंद उत्पन्न हो क्योंकि उत्तम गुणों से आत्मा में शांति प्राप्त होती है। इस संसार में अनेक ऐसे जीव हैं, जो घोर कष्ट पा रहे हैं। जब मैं उन्हें देखू, तब मेरे मन में कृपा, दया, अनुकंपा, करुणा का भाव उत्पन्न हो ताकि मैं उनको क्लेश से बचाने का अपनी ओर से जैसा शक्य हो, प्रयत्न कर सकूँ। यह संसार बड़ा विचित्र है। इसमें अनेक ऐसे व्यक्ति पाए जाते हैं, जो औरों के साथ वैर-भाव Vam शत्रु । उपा यह १. ध्यान-जागरण, पृष्ठ : ५५. २. मंगलवाणी, पृष्ठ : २७४,२७५. BEAVENalam 115 A ART INE NEPAL R ANDNISTERRORTION 30AMDEHATI HATA NDROR
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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