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सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना
इस सारभूत णमोक्कार मंत्र का परित्याग कर जो अन्य मंत्रों की उपासना करते हैं, उनका कर्म, | भाग्य सचमुच प्रतिकूल है। वे बड़े अभागे है, नहीं तो सभी इच्छित पदार्थों को देनेवाले कल्पवृक्ष का | त्याग कर दुःखकर बबूल के वृक्ष की उपासना करने का मन कैसे हो ? णमोक्कार मंत्र सब मंत्रों का अधिनायक है। णमोक्कार मंत्र के बीज द्वारा वासित सुरभित मंत्र की उपासना की जाए जो वह फलप्रद होती है, नहीं तो वह निष्फल जाती है। ऐसा सभी शास्त्रों का कथन है ।
अमृत 'के सागर की तरंगों से सब प्रकार के विष-विकार का नाश हो जाता है। वह केवल अमृत का गुण है। जल की तरंगों को प्रवाहित करने वाले पवन का नहीं। उसी प्रकार अन्य मंत्रों को फलीभूत | करने वाला णमोक्कार मंत्र ही बीज रूप है। बीज रहित मंत्र निस्सार है। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए आगे लिखते हैं :
जेह निर्बीज ते मंत्र झूठा, फले नहीं साहमुं हुई अपूठा । जेह महामंत्र नवकार साधे, तेह दोअ लाके अलवे आराधे । ।
णमोक्कार मंत्र रूप बीज से रहित समस्त मंत्र झूठे हैं। वे फलित नहीं होते वरन् हानिप्रद ही सिद्ध होते हैं। इसलिये जो जीव णमोक्कार मंत्र का आराधन करते हैं, वे दोनों लोकों को कृतार्थ बनाते हैं। णमोक्कार मंत्र के विशेष गुणों का वर्णन करते हुए अंत में लिखते हैं:
रतन तणी जेम पेटी, भार अल्पबहुमूल्य । चौद पूरवनुं सार छे, मंत्र से तेहने तुल्य । । सकल समय अभ्यंतर, अ पद पंच प्रमाण । महसुअरसंध ते जाणो, चूला सहित सुजाण ।।
रत्नों से भरी हुई पेटी का वजन अत्यंत थोड़ा होता है, किंतु उसका मूल्य अत्यधिक होता है। उसी प्रकार णमोकार मंत्र शब्दों में बहुत छोटा है, संक्षिप्त है किंतु अर्थ द्वारा वह अनंत है। चतुर्दश पूर्वो का यह सार है । समस्त सिद्धांतों में ये पाँच पद प्रमाणभूत माने गये हैं तथा चूलिका सहित | समस्त णमोक्कार मंत्र को महाश्रुतस्कंध के रूप में व्याख्यात किया गया है। णमोक्कार के अतिरिक्त | अन्य शास्त्रों को महाभूतस्कंध नहीं अपितु श्रुतस्कंध ही कहा जाता है।
णमोक्कार मंत्र में मैत्री आदि भावना चतुष्टय का समन्वय
जैन शास्त्रों में धर्म को जीवन में उतारने के लिये भावनाओं को बहुत महत्त्व दिया गया है। | क्योंकि जीवन में किसी भी कार्य के प्रति उत्साह, उद्यम और अध्यवसाय उत्पन्न होने के पूर्व मन में भावना का सर्जन होता है।
१. त्रैलोक्य दीपक, पृष्ठ : ४२-४६.
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