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________________ णमो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक परिशीलन चित्रकला के बाद संगीतकला का स्थान आता है, जहाँ संगीत द्वारा, जिसके साथ तंतुवाद्य और | तालवाद्य आदि का योग रहता है, सौंदर्यात्मक सृष्टि का एक विशेष उपक्रम मानव ने स्वीकार किया । स्वर, राग और आलाप के आधार पर हृदयगत भावों को माधुर्य के साथ प्रस्तुत करने में संगीत कला | का माध्यम मानव के लिये बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ, जिसका उसने लौकिक और पारलौकिक दोनों दृष्टियों से उपयोग किया। संगीतकला में वाद्य आदि साधनों तथा सप्त-स्वरात्मक जटिल पद्धतियों का समावेश एक प्रकार की भारवाहिता है, यह सोचते हुए काव्य-कला की ओर मानव का रूझान बढ़ा, | जहाँ किसी प्रकार के वाद्य संगीत आदि के बिना शब्दों के चमत्कार द्वारा एक अनुपम भाव - सृष्टि | उपस्थित कर सके । काव्यकला का तो और भी अधिक विकास हुआ। अनेक प्रबंध काव्य, महाकाव्य, खंडकाव्य, गीतिकाव्य आदि की रचना हुई । उपर्युक्त पाँच ललित कलाओं के विकास का एक बहुत लंबा इतिहास है। इन पर पृथक् पृथक्, विपुल परिमाण में साहित्य सर्जन हुआ, जो भारतीय विद्या की अमूल्य निधि है । - इन कलाओं के संदर्भ में णमोक्कार मंत्र के कलात्मक सौंदर्य पर यहाँ विचार किया जा रहा है। णमोक्कार मंत्र धार्मिक या आध्यात्मिक कला का सर्वोत्तम प्रतीक है। धर्म को सुंदर, उत्तम, पवित्र भावों द्वारा, मधुर, कोमल वाणी द्वारा स्वीकार करना सहज, सुंदर, पावन, आचार द्वारा सफलतापूर्वक, सरसत्तापूर्वक रुचिपूर्वक पालन करना धर्मकला है। सव्वा कला धम्मकला जिणाइ । धर्मकला सब कलाओं को जीत लेती है। अर्थात् वह सर्वोत्तम कला है। वह ऐसी कला है, जो शाश्वत सौंदर्य प्रदान करती है। समीक्षा ललित कलाओं में सबसे स्थूल रूप वास्तुकला या भवन निर्माण कला का है। नवकार मंत्र यह बोध कराता है कि यह शरीर ही आत्मा का भवन है। इसी में आत्मा परिव्याप्त हैं। मनुष्य बाहरी भवनों, महलों, अट्टालिकाओं को सुसज्जित करता है । उनमें विमोहित बना रहता है, 'मेरे पचास | मंजिल का भवन है - यह सोचकर अहंकार करता है, यह सब मिथ्या है । इस भूतल पर बड़े-बड़े सम्राट् आए, उत्तम से उत्तम भवनों का निर्माण किया परंतु आज न वे सम्राट् हैं, न वे भवन हैं सव कराल काल के मुख में समा गये। कोई किसी का नाम तक नहीं जानते । इसलिये णमोक्कार मंत्र जीव को प्रेरित करता है कि तुम अपने देहरूपी भवन को संभालो । । I १. उज्ज्वलवाणी, भाग-१, पृष्ठ : २९७. 109
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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