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णमो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक परिशीलन
मंत्र शास्त्र ऐसा प्रतिपादित करता है कि जब ज्ञान तंतु निष्क्रिय हो जाएं तो ज्ञान केंद्र में दस | मिनिट तक पीले रंग का ध्यान किया जाए । फलस्वरूप ज्ञान- तंतु सक्रिय होंगे ।
जब व्यक्ति बहुत बड़ी समस्या में उलझा हो, समाधान नहीं मिल रहा हो तो आनंद केंद्र या हृदय में दस मिनिट तक पीले रंग सुनहरे रंग का ध्यान करें। सामाधान प्राप्त होगा। ।
रंगों के साथ मनुष्य के मन का तथा शरीर का कितना गहरा संबंध है, उसे जब तक जाना नहीं जाता तब तक णमोक्कार महामंत्र की रंगों के साथ साधना करने की बात समझ में नहीं आ सकती ।
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हम ज्ञान केंद्र पर 'णमो अरिहंताणं' का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ करते हैं। श्वेत वर्ण से हमारी | आंतरिक शक्तियाँ जागरित होती हैं । ऐसा माना जाता है कि हमारे मस्तिष्क में धूसर, धूलि जैसा या भूरे रंग का एक द्रव पदार्थ है, वह समग्र ज्ञान का संवहन करता है। हमारी पीठ में जो रज्जु या नाड़ी है, उसमें भी वह पदार्थ है।
मस्तिष्क में अरिहंत भगवान् का धूसर एवं श्वेत वर्ण के साथ ध्यान किया जाता है । तब ज्ञान की सुपुप्त शक्तियाँ जागरित होती हैं। इसी कारण इस पद की आराधना के साथ ज्ञान केंद्र का और श्वेत वर्ण का समायोजन किया गया है।
श्वेत वर्ण स्वास्थ्यप्रद है। यह ज्ञातव्य है कि होम्योपैथिक चिकित्सा में सफेद गोलियों का चयन | किया गया है। संभव है, उनका यह चिंतन रहा हो कि रोग को मिटाने में औषधि तो अपना कार्य करेगी ही, साथ ही श्वेत वर्ण भी उसको सहयोग देगा ।
'णमो सिद्धाणं' का ध्यान दर्शन केंद्र में रक्त वर्ण या लाल रंग के साथ किया जाता है। उदित होते हुए सूर्य का जैसा लाल रंग होता है, वैसे ही लाल रंग की परिकल्पना की जाती है। लाल रंग | हमारी आंतरिक दृष्टि को जागरित करता है ।
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शरीर विज्ञान के अनुसार देहस्थित 'पीयूष ग्रन्थि ' ( Pitutary Gland) और उसके स्रावों को नियंत्रित करने के लिये लाल रंग बहुत उपयोगी है । पीयूष ग्रन्थि को हम तृतीय नेत्र भी कह सकते हैं। अर्थात् चर्म चक्षुओं से जो दृष्टिगोचर होता है, उसका तो मूर्त्त या स्थूल से संबंध होता है । यह ग्रंथि आंतरिक दृष्टि को सक्रिय करती है। कभी शिथिलता, आलस्य या जड़ता का अनुभव हो तो दर्शन केंद्र में दस मिनिट तक लाल रंग का ध्यान करने से जड़ता दूर होती है और स्फूर्ति उत्पन्न होती है | मंत्रशास्त्र के विद्वानों ने विविध रंगों के आधार पर मंत्र प्रयोग का विश्लेषण किया है। दर्शन केंद्र के जागरित होने से आत्म-साक्षात्कारमूलक अंतर- दृष्टि का विकास एवं अतींद्रिय चेतना का उन्नयन होता है
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