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________________ सिन्नपदा और णमोक्कार-आराधना tr dc णमोक्कार मंत्र की साधना का समग्र दृष्टिकोण है- आत्मा का जागरण किन्तु इस जागरण की प्रक्रिया के साथ-साथ साधक को यह देखना आवश्यक है कि वह किस रुग्णता से ग्रस्त है। क्रोध, अभिमान, लोभ, भय, हीन-भावना या चिंता आदि में से कौनसी बीमारी उसे सताती है। उसे पहले नष्ट करना होगा। यद्यपि साधक का मूल लक्ष्य पूर्णत: चेतना को जगाना, शक्ति के स्रोतों को जागरित करना और आनंद के महासागर में अवगाहन करना है, किन्तु पहले यह भी जानना आवश्यक हो जाता है कि कौनसा आंतरिक दोष उसे पीड़ित कर रहा है। उस दोष को समाप्त करने का मार्ग क्या है ? जब यह बात ज्ञात हो जाती है, तब साधक उसके अनुरूप पद्धति को अपनाता है। यह सत्य है कि णमोक्कार मंत्र की आराधना से निर्जरा होती है। कर्म क्षीण होते हैं। आत्मा की विशुद्धि होती है। इस दृष्टि से साधक जब चाहे तब इसका जाप करे। सोते, उठते, बैठते, चलते, फिरते, जब भी याद आये, तब इसका स्मरण, जप एवं ध्यान करे। इसमें कोई बाधा नहीं है किन्तु जब साधक किसी एक रोग विशेष को-दोष विशेष को मिटाना चाहे तो विशेष पद्धति का अनुसरण करना अपेक्षित होगा। प्रत्येक रोग के लिये णमोक्कार मंत्र की एक विशेष प्रकार की साधना करनी होगी। विशेष प्रकार के ध्वनि-तरंग और प्रकंपन उत्पन्न करने होंगे, जिससे उस रोग की ग्रंथि खुले और उस पर ऐसा प्रबल प्रहार हो कि वह समाप्त हो जाए। मंत्रवेत्ता-आचार्यों ने णमोक्कार मंत्र के साथ रंगों का समायोजन किया। मंत्र के गहनतम रहस्यों को जानने वाले आचार्यों ने एक-एक पद के लिये एक-एक रंग की समायोजना की है। हमारा सारा जगत् पौद्गलिक या भौतिक है। हमारा शरीर भी पौद्गलिक है। वर्ण, गंध, रस स्पर्श पुद्गल के ये चार लक्षण हैं। सारा भूमंडल, संपूर्ण मूर्त्तजगत् वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के प्रकपनों से आदोलित है। वर्ण या रग से हमारे शरीर का बहुत ही नकट्यपूर्ण सबध है। __ मन के आवेगों का और कषायों का भी आत्यंतिक संबंध है। शरीर की स्वस्थता तथा मन की स्वस्थता और अस्वस्थता, आवेगों की कमी और वृद्धि- ये सब इस बात पर निर्भर है कि हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं और किस प्रकार के रंगों से पार्थक्य या अलगाव करते हैं या उनका संश्लेष या संपर्क करते हैं। नीला रंग शरीर में जब कम होता है, तक क्रोध अधिक आता है। नीले रंग की पूर्ति होजाने पर क्रोध कम हो जाता है। श्वेत रंग की जब न्यूनता होती है, तब अस्वस्थता बढ़ती है। काले रंग की कमी हो जाने पर आलस्य और जड़ता की वृद्धि होती है। पीले रंग की कमी होने पर ज्ञान-तंतु | निष्क्रिय और क्रियाहीन बन जाते हैं। काले रंग की कमी होने पर प्रतिरोध की शक्ति घट जाती है। 104 RESH
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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