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________________ सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना [ है, उसे पभेदक। व्य के दो कहा जाता तु उसका और छोटे पहाड़ को पहाड़ी कहा जाता है। बड़ी नदी को नद और छोटी नदी को नदी कहा जाता है। बडे नाले को नला और छोटे नाले को नाली कहा जाता है। इसी प्रकार संख्या, पुरुष, उपसर्ग, काल, कारक आदि के भेद से अर्थ-भेद स्वीकार करने वाला यह शब्द नय' है। वर्तमान कालीन प्रत्युत्पन्न वस्तु को 'ऋजसूत्र नय' कहा जाता है। उसी को 'शब्द नय' विशेष रूप से बतलाता है। उसे शब्द नय इसीलिये कहा जाता है कि वह शब्द के वाच्यार्थ को ही मुख्यता से ग्रहण करता है। इस नय के अनुसार जल धारण करने की क्रिया में जो समर्थ होता है, उसे ही 'घट' कहा जाता है। जिसका नाम केवल घट हो, जो जल धारण आदि क्रिया में समर्थ नहीं हो, उसे घट नहीं कहा जा सकता। अर्थात् इस नय के मत से 'घट' शब्द नाम-स्थापनादि रहित केवल 'भावघट' को ही ग्रहण होता है। ऋजु का वस्तु नष्ट हीं आती, । उपयोग ही सत् ६.समभिरूढ़ नय ___ जहाँ शब्द का भेद है, वहाँ अर्थ का भेद अवश्य होता है, समभिरूढ़ नय ऐसा मानता है। 'शब्द नय' अर्थ-भेद वहीं मानता है, जहाँ लिंग आदि का भेद हो। परंतु यह नय प्रत्येक शब्द के अर्थ को भिन्न-भिन्न मानता है, चाहे वे शब्द पर्यायवाची हों। जैसे इंद्र और पुरंदर शब्द दोनों इंद्र या देवराज के सूचक हैं। 'इंदनात्-इंद्रः'- के अनुसार इन्द्र का अर्थ ऐश्वर्य का अनुभव करने वाला है। 'पुरो दारणात् पुरन्दर:'- के अनुसार दानवों के नगर को नष्ट करने के कारण इंद्र- पुरन्दर कहा जाता है। इन्द्र और पुरंदर, इन दोनों का आधार एक ही व्यक्ति है, अर्थात् वे दोनों पर्यायवाची हैं किन्तु अर्थ दोनों का पृथक्-पृथक है। इन दोनों शब्दों में भिन्न अर्थ बताने का सामर्थ्य है। इस प्रकार यह नय समभिरूढ़ नय कहा जाता है। 'प्रतिक्षण ण करता नय' है। धान हैं। है। शब्द होता है, न लिया र्थ में भी को पहाड़ ७. एवंभूत नय जिस शब्द का अर्थ जिस क्रिया को प्रगट करता है, उस क्रिया में तत्पर पदार्थ को या व्यक्ति को उस शब्द का वाच्य मानना एवंभूत नय का विषय है। जैसे- एक व्यक्ति , पुजारी, सेवक या योद्धा तभी कहा जाता है, जब वह पूजा में, सेवा में, युद्ध में तत्पर हो । प्रत्येक शब्द का अर्थ किसी न किसी के साथ संबंध रखता है। । इन सातों नयों में अल्प या सीमित पूर्ववर्ती नय स्थूल- अनेक विषयों को ग्रहण करने वाले हैं तथा पश्चाद्वर्ती नय सूक्ष्म विषय को ग्रहण करने वाले हैं। नैगम नय सत् और असत् दोनों पदार्थों को विषय रूप में स्वीकार करता है, क्योंकि संकल्प सत् और असत् दोनों में हो सकता है। 'संग्रह नय में मात्र सत ही विषय के रूप में आता है। 'व्यवहार नय' सत के एक विभाग को जानता है। 90 HE समालोचना का
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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