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________________ णमो सिद्धार्ण पद: समीक्षात्मक परिशीलन । ३. व्यवहार नय संग्रह नय द्वारा ग्रहण किये जाने वाले पदार्थों का जो योग्य रीति से विभाग करता है, उसे । 'व्यवहार नय' कहा जाता है। वह दो प्रकार का है- एक सामान्यभेदक और दूसरा विशेषभेदक। सामान्य संग्रह में जो भेद करता है, वह सामान्यभेदक व्यवहार कहा जाता है। जैसे द्रव्य के दो भेद हैं- जीव और अजीव । जो 'विशेष संग्रह' में भेद करता है, उसे विशेष भेदक व्यवहार कहा जाता है। जैसे जीव के दो भेद है, संसारी और मुक्त । इसी प्रकार भ्रमर पांच वर्षों से युक्त है, किन्तु उसका श्याम वर्ण स्पष्ट है। अत: व्यवहार उसे श्याम वर्ण वाला ही मानता है। ४. ऋजुसूत्र नय ऋजु का अर्थ अवक्र है। वस्तु को अवक्रता से, सरलता से कहना 'ऋजुसूत्र नय' है। ऋजु का अभिप्राय- प्रत्युत्पन्न (वर्तमान कालीन) और स्वकीय (अपना) ऐसा विवक्षित है। अतीत वस्तु नष्ट हो चुकी है, अनागत वस्तु उत्पन्न नहीं है, परकीय वस्तु परधन की तरह अपने उपयोग में नहीं आती, अत: निष्प्रयोज्य है। इसलिये ये नय वस्तु, असत् और अवस्तु- तीनों को मानता है। इसका यह कहना है कि जो व्यवहार की उपलब्धि से रहित है, अर्थात् जो व्यवहार में उपयोग में नहीं आता, वह सामान्य असत् माना जाता है। वस्तु का वर्तमान कालीन स्वकीय-पर्याय ही सत् है। इसके दो भेद हैं- (१) सूक्ष्म (२) स्थूल। ___ 'सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय' - 'समय' मात्र के वर्तमान पर्याय को ग्रहण करता है, जैसे- पदार्थ प्रतिक्षण क्षयशील या परिणमनशील है। 'स्थूल ऋजुसूत्र नय' अनेक समय में वर्तमान पदार्थ को ग्रहण करता है। जैस- मनुष्य पर्याय । नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजसूत्र- ये नय, 'अर्थ नय है। इसके पश्चात्वर्ती तीन 'शब्द नय है। इस प्रकार ये सात नय ज्ञानात्मक और शब्दात्मक हैं। इसका तात्पर्य यह है कि उपर्युक्त चारों नैगम अर्थप्रधान है। शब्दादि तीन नय शब्द प्रधान हैं। STHAminodsuraTORRIERRIANACHAR ५. शब्दनय शब्दों में लिंग आदि के भेद के आधार पर जो अर्थ का भेद बतलाता है, वह शब्द नय है। शब्द में जो लिंग आदि का व्यवहार होता है, वह अर्थ की अपेक्षा से होता है। अर्थ में जो लिंग होता है, उसके समान शब्द में लिंग का प्राय: व्यवहार होता है और इस लिंग को शब्द का लिंग मान लिया जाता है। इस कारण 'शब्द नय' की यह मान्यता है कि जहाँ लिंग आदि का भेद है, वहाँ अर्थ में भी भेद पड़ जाता है, जैसे पहाड़ और पहाड़ी, नद और नदी, नल और नली आदि। बड़े पहाड़ को पहाड़ 89 SAMACHAR RAHEPANE ARREENA
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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