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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
नमस्कार मंत्र की अपूर्व तेजस्वी मातृकाओं के थोड़े-से श्रवण मात्र से पाप-लोक का, अपने सघन पापपुञ्ज का प्रलय कर डालता है।
श्रवण की अपेक्षा उच्चारण, उच्चारण की अपेक्षा रटन, रटन की अपेक्षा सहज ध्वनि का स्फुरण, सहज स्फुरण की अपेक्षा एकाकार तादात्म्यपूर्ण विलोपन तथा विलोपन के बाद एकांत रूप से मातृका में चित्त का सर्वथा शून्यीकरण- इन सब की उत्तरोत्तर प्राप्ति होती जाती है। इससे आगे ध्यानाश्रित मंत्र के विकास का रहस्य स्वायत्त होता है। फिर उससे आगे रहस्य के आचरण का, उस रहस्य भूत गूढ़ तत्त्व के अनुसार चलने का स्वाभाविक बल, नवकार मंत्र की मातृकाओं की शाश्वत रचना में से प्राप्त होता है। चौदह रज्जु-परिमाण लोक, जिसकी केवल एक मातृका में से संरक्षण, संवर्धन तथा संपूर्णत्त्व प्राप्त कर सकता है, उस णमोक्कार मंत्र की एक-एक मातृका में अवस्थित अगम्य रहस्य रूपी समुद्र को कैसे समझा जा सकता है ? परम-पवित्र पदार्थ स्वरूप श्री नवकार मंत्र की केवल एक मातृका का सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम बलों का माप निकालना असंभव है।
मानव समग्र प्रकृति की विराट कार्यवाही या सर्वसत्ताधीश्वरी प्रकृति की अखंड समग्रता की उड़ान, श्री नमस्कार मंत्र की एक मातका की उड़ान के सामने कुछ नहीं है। केवल नवकार मंत्र की स्थूल, शब्द-स्वरूपात्मक एक छोटी सी मातृका की जब यह बात है तो श्री नवकार मंत्र के नवपद या | पाँच पद के समग्र बल का तो माप ही नहीं हो सकता।
यदि प्रकृति को किसी भी शक्ति या समृद्धि की आवश्यकता हो तो णमोक्कार महामंत्रराज उन आवश्यकताओं को पूरी कर सकता है, क्योंकि समग्र प्रकृति ने अपना समस्त शुभ, संपत्ति, वैभव श्री णमोक्कार महामंत्र में स्थापित किया है। वैसा करके प्रकृति सार्थक और निश्चित हुई है।
प्रकृति ने अपनी संपूर्ण समृद्धि का एकत्रीकरण अपनी शोभा और सफलता के लिये या अपनी सुरक्षा और वृद्धि के लिये, णमोक्कार महामंत्र की एक मातृका में स्थापित किया है। प्रकृति के समग्न बल का कोई माप नहीं कर सकता। जब प्रकृति ने अपनी समस्त समृद्धि को एकत्रित कर नवकार मंत्र में स्थापित कर दिया है तो फिर नवकार मंत्र की समृद्धि और विभूति का माप ही क्या हो ?
णमोक्कार मंत्र सुख-दु:ख की मूलभूत कल्पनाओं को, जो हमारे भीतर एक रोग-ग्रंथि के रूप में विद्यमान हैं, विच्छिन्न कर अभिनव आनंदपूर्ण स्थान का सर्जन करता है, जिसे सिद्धशिला कहा जाता है। ___ इस प्रकार णमोक्कार मंत्र की पवित्र कुक्षि से चेतनारूपी सिद्धशिला का जन्म होता है। जो णमोक्कार मंत्र के जप में डूब जाता है, निमग्न हो जाता है, वह सब प्रकार के सत्यों को जानने की भूमिका को पार कर अनुभव की भूमिका पर आ जाता है। सत्य मात्र को ही देखना और जानना
METHAMBHARA