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________________ Santmaniuminiereindianminovaibom सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना का स्वरूप उस मंगल करण क्यों है ? उस कौन सी दू उत्कृष्ट लोकाग्र में स्थित सिद्धशिला पर जब पहुँचेंगे, तब कर्म-पुद्गलों की वज्रमय बंधन-पीड़ा से मुक्त होंगे किंतु नमस्कार-महामंत्र एक ऐसी सिद्धशिला है, जो इस संसार के दावानल के मध्य में विद्यमान है, जहाँ जाकर ज्ञान और आनंद में लीन होना थोड़े ही प्रयत्न से साध्य है। णमोक्कार मंत्र रूप सिद्धशिला ऐसी धातु से बनी हुई है, जो अपनी दृढ़ता द्वारा कार्मिक पुद्गलों के मजबूत अणुओं का पराभव कर सकती है। णमोक्कार महामंत्र के वर्तुल के समीप आने की तो बात ही क्या, कार्मिक पुद्गल हत्यारे अपराधी की तरह उससे लाखों योजन दूर भाग जाते हैं । ___ णमोक्कार मंत्र की वज्रमय धातु से जो कर्म-पुद्गलों के हृदय को, मर्म को छिन्न-भिन्न करने में, चीरने में सक्षम हैं, चित्त जब संयुक्त हो जाता है, तब उसमें महामंत्र के वज़मय तेज, वर्तुल का फौलादी तत्त्व उत्त्पन्न होता है। उस फौलादी तत्व के समक्ष कार्मिक-पुदगलों की समग्र शक्ति, प्रलयकाल में तांडव-नृत्य करते हुए शिव के पैरों के नीचे कुचले जाते मूंगफली के छिलके की तरह नष्ट हो जाती है। णमोक्कार मंत्र एक पूर्ण योग है और साधक के जीवन में प्रकाश तथा प्रसन्नता देने वाला है। णमोक्कार मंत्र श्रुत ज्ञान है, चौदह पूर्व का सार है। पान पर्यंत विद्यमान खंडतामय रता है। पतापूर्वक चूमते हैं, क कर्म नहीं है, अर्थात् पे लेकर मस्तिष्क जगत् में णमोक्कार मंत्र और लय-विज्ञान णमोक्कार मंत्र की एक-एक मातकाओं का गणित और विज्ञान समझने के लिये अनेक जन्मों की साधना आवश्यक है। इन मातकाओं का गणित ऐसी रीति से रचित है, जिससे साधक का चित्त जप में से ध्यान में, ध्यान में से लय में, लय में से समाधि में तथा समाधि में से प्रज्ञा में दिव्य गति द्वारा गमन करता है। मातृका की रचना में ऐसा गूढ़तम रहस्यमय बल है, जिसके द्वारा ध्यान-प्रवाह का ऊर्वीकरण सहज ही हो जाता है। इन मंत्राक्षरों की संयोजना में एक ऐसी कलात्मक, गणितात्मक तथा विज्ञानात्मक सर्जना है, जिसके द्वारा थोड़े ही प्रयत्न से मंत्र-सिद्धि हो जाती है। जप द्वारा जितनी अधिक परिणामों की विशुद्धि होगी, उतनी अधिक मंत्र-शुद्धि होगी। कोई भी मंत्र परिणामों की जितनी विशुद्धि नहीं कर सकता, नवकार मंत्र थोड़े ही प्रयत्नों से उतनी अधिक भाव-विशुद्धि कर सकता है, इसलिये इसे मंत्राधिराज कहा गया है। उदाहरणार्थ- जैसे कोई व्यक्ति फाँसी के तख्ते पर चढ़ा हो, पानी का अंतिम ग्लास पी रहा हो, तब तक जिसने धर्म, परमेश्वर तथा तत्त्वज्ञान का जीवनभर विरोध किया हो, वैसा हत्यारा या चोर से वे कर्महोकर तरह द्रशिला १. महामंत्रनां अजवाळा - पृष्ठ ६०-६६. 82 20 SANSAR
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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