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________________ णमा सिद्धाण पद समीक्षात्मक परिशीलन ___ णमोक्कार के विशिष्ट प्रयोगों द्वारा यह अनुभव किया जा सकता है कि उस मंगल का स्वरूप क्या है ? उसकी आदि, मध्य क्या है ? उसके प्रगट होने के प्राथमिक नियम क्या हैं ? उस मंगल में संग्रथित श्रृंखलाबद्ध परिणाम-परंपरा क्या है ? उस मंगल को उत्कृष्ट विशेषण का अलंकरण क्यों दिया गया ? उसमें ऐसी कौन सी विशेषता है ? उस मंगल के समग्र बल का प्रमाण क्या है ? उस उत्कृष्ट महामंगल की तुलना में समग्र प्रकृति की विविधिता तुच्छ प्रतीत होती है। ऐसी कौन सी विलक्षणता णमोक्कार मंत्र में विद्यमान है ? समस्त विश्व में रमणशील सर्वोच्च रस-बिंदू उत्कृष्ट मंगलरूप नवकार में कैसे समाविष्ट हैं ? हमारे वर्तमान जीवन के सामान्य क्षण से लेकर सिद्धशिला के सर्वोत्कृष्ट, सर्वोच्च स्थान पर्यंत यह णमोकार मंत्र उत्कृष्ट महामंगलमय-अभयप्रद-वज़मय कवच की तरह चारों ओर विद्यमान रहता है। भय, चिंता तथा शोषणमय संसार के दावानल में जलते हुए व्यक्ति में अखंडतामय ध्यान-प्रतिमा का अमर-सर्जन करता है। अर्थात् शोक-संलग्न जगत् में यह सिद्धि प्रदान करता है। ऐसी अत्यंत उत्कृष्ट महामंगलमय विविध प्रतीतियाँ, अनुभूतियाँ प्रयोगों द्वारा अर्थात् तन्मयतापूर्वक जपाभ्यास द्वारा साधक प्राप्त कर सकता है। आज हम विश्व में उठते हैं, बैठते हैं चलते हैं, श्वासोच्छ्वास लेते हैं, वायुमंडल में घूमते हैं, ये सब कार्य कार्मिक अणु की, कर्म-परमाणुओं की चामत्कारिक शक्ति का परिणाम है। चक्रवर्ती आदि कितने भी शक्तिशाली, बलवान क्यों न हो, किंतु वे अति सूक्ष्म कार्मिक कर्म पुद्गलों की अविरल शक्ति के तुच्छ उत्पाद (उत्पत्ति) मात्र हैं। इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं है, जिस पर कर्म-पुदगलों की विपाक-शक्ति ने मृत्यु की छाया का करुण-रस न बहाया हो। अर्थात् जिसने आयुष्य-कर्म के परिणाम स्वरूप मरण प्राप्त न किया हो। संसार के छोटे से छोटे प्राणी से लेकर बड़े से बड़े प्राणी तक अर्थात् साधारण मनुष्य से लेकर आइन्स्टीन जैसे वैज्ञानिक तक इतना ही नहीं, गौतमस्वामी या भगवान् महावीर तक के मानव-मस्तिष्क में कर्म पुद्गलों की गणितात्मक गणना परिव्याप्त है अर्थात् कर्म-पद्गलों के प्रभाव से इस जगत में कोई नहीं बच पाया है। ___ सर्वज्ञ प्रभु जब सिद्धशिला पर पहुँचते हैं, तभी कार्मिक पुद्गलों की विकारमयी छाया से वे अस्पृष्ट होते हैं। वहाँ पहुँचने के पूर्व तक कर्म के अणु लगे रहते हैं। इस संसार में सिद्धशिला के अतिरिक्त कोई ऐसा स्थान नहीं है, जिसका प्रत्येक पदार्थ कर्मपुद्गलों से और उनकी विकृति से प्रभावित और व्याप्त न हो, जिनकी अशुभ छाया से भ्रष्ट होकर वह शुद्ध भाव से पृथक् न होता हो। मात्र एक णमोक्कार मंत्र ही ऐसा है, जो सिद्धशिला की तरह कर्म-पुद्गलों की भ्रष्ट छाया के विकृत प्रभाव से सर्वथा मुक्त है, इसलिये उसको दूसरी सिद्धशिला कहा जा सकता है। ANNA 81
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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