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सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना
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कंधे पर बिठा लेता है। पंगु उसे गंतव्य मार्ग बतलाता रहता है, अंध तदनुसार चलता रहता है। इसी प्रकार सूत्र और अर्थ मिलकर ही यथेष्ट स्थान पर पहुंच सकते हैं।
जैसा कि ऊपर उल्लेख हुआ है- णमोक्कार का अर्थ के रूप में कथन करने वाले श्री अरिहंत देव हैं तथा सूत्र के रूप में संकलन करने वाले गणधर देव हैं। इसलिये अर्थ को प्राण और सूत्र को देह की उपमा दी गई है। अर्थ को सजीव पुरुष और सूत्र को उसकी छाया की भी उपमा इसी प्रकार दी गई है।
णमोक्कार का प्रथम पद ‘णमो अरिहंताणं' है। इसमें तीन पद हैं और सात अक्षर हैं। प्रथम पद के सात अक्षरो में से प्रत्येक अक्षर में एक-एक भय को अपगत करने की, नष्ट करने की विलक्षण शक्ति है। ये सात अक्षर सात क्षेत्रों की तरह शाश्वत और सफल हैं। प्रथम पद के तीन शब्दों में पहला शब्द ‘णमो' है। इसका अर्थ नमस्कार है। णमोक्कार- नमन या प्रणमन की एक क्रिया है। इससे भक्त्ति श्रद्धा और पूज्य-भाव व्यक्त होता है। इसकी महत्ता का बोध; इसके स्वरूप और परिणाम को जानने से प्राप्त हो सकता है।
किसी भी वस्तु को जानने के लिये उसके कारण, कार्य और स्वरूप- इन तीन अवस्थाओं का ज्ञान आवश्यक होता है। वर्तमान काल में जो अवस्था होती है, उसको स्वरूप कहा जाता है। भूतकाल में जो अवस्था होती है, उसको कारण कहा जाता है। आगामी या भविष्य काल में जो अवस्था होती है उसे कार्य कहा जाता है। णमोक्कार रूप क्रिया के स्वरूप, उसके कारण तथा उसके फल या कार्य के सही ज्ञान से णमो पद का वास्तविक अर्थ समझा जा सकता है। ___ शास्त्रकार यह बतलाते हैं कि नमस्कारात्मक क्रिया का हेतु नमस्कार को आवृत करने वाले कर्म का क्षयोपशम है। मतिज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, दर्शनमोहनीय तथा वीर्यांतराय-कर्म के क्षयोपशम से यह प्रगट होता है। कर्म-क्षय या क्षयोपशम के लिये केवल अकाम-निर्जरा से सफलता नहीं मिलती, किंतु सकाम-निर्जरा की भी अत्यंत आवश्यकता है।
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णमोक्कार मंत्र : लेश्या विशुद्धि का उपक्रम
णमोक्कार की क्रिया से जो लेश्यात्मक विशुद्धि होती है, वह नमस्कार का स्वरूप है। आत्मा के शुभ तथा अशुभ परिणामों को लेश्या कहा जाता है। कर्म-युक्त आत्मा का पुद्गल-द्रव्य के साथ गहरा संबंध रहता है। आत्मा द्वारा पद्गल गृहीत होते हैं और वे उसके चिंतन को प्रभावित करते हैं, उसे द्रव्य-लेश्या कहा जाता है। उत्तम पुद्गल, उत्तम विचारों के सहायक बनते हैं तथा अधम पुद्गल, दुर्विचारों के सहायक बनते हैं। किसी क्षेत्र में ऐसे अनुत्तम या अनिष्टकारी पुद्गल होते हैं, जो आत्मा के शुद्ध विचारों को एकाएक परिवर्तित कर देते हैं।
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