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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन Peosmaranee 'आराधनानी वैज्ञानिकता' नामक पुस्तक में कहा गया है : "लेश्या शब्द जैन साहित्य में बहुत प्रचलित मनोवैज्ञानिक शब्द है। मनुष्य के मन की शुभ और अशुभ भावनाओं की अभिव्यक्ति उसके माध्यम से होती है। सबसे विशिष्ट बात तो यह है कि आचार्यों ने मन की भावना के अनुरूप रंगों की भी कल्पना की है। सामान्य जीवन व्यवहार में भी | मनुष्य की वृत्ति-प्रवृत्ति के अनुसार, उसके चेहरे पर भाव प्रदर्शित होते हैं। ऐसे छः प्रकार के भावों को जैनाचार्यों ने लेश्या शब्द द्वारा समझाया है।" __ "लेश्या पद के अन्तर्गत सम-कर्म, सम-वर्ण, सम-लेश्या, सम-वेदना, सम-क्रिया, सम-आयु तथा कृष्ण, नील, कापोत, तैजस्, पद्म और शुक्ल-लेश्या के आश्रय से प्रभावित जीवों का वर्णन किया गया है।"२ यद्यपि आत्मा का स्वरूप सर्वथा स्वच्छ है, किंतु कर्म-पद्गलों से आच्छादित होने से उसका स्वरूप विकृत होता जाता है, उसे भाव-लेश्या कहा जाता है। कर्मों से होने वाली उस विकृति की | अल्पता और अधिकता के आधार पर आत्मा के परिणाम सद्-असद् होते रहते हैं। जब विकृतियों की न्यूनता होती है, तब आत्मा के परिणाम शुभ होते हैं। परिणामों की यह तरतमता- न्यूनता-अधिकता अनेक प्रकार की होती है। उसे छ: भागों में |विभक्त किया गया है, जो कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत-लेश्या, तैजस्-लेश्या, पद्म-लेश्या तथा शुक्ल-लेश्या के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें पहली तीन अधर्म-लेश्याएं कही जाती हैं और अंतिम तीन धर्म-लेश्याएं कही जाती हैं। ___णमोक्कार मंत्र की आराधना से क्षमता, दमता तथा शमता आदि गुणों का विकास होता है। क्षमता का अर्थ- क्षमाशीलता और क्रोध रहितता है। दमता का अभिप्राय- इंद्रिय-दमन तथा काम-रहितता है। शमता का अर्थ- लोभ-वर्जन है। जो दूसरे को अपने समान समझता हो, वह उस पर क्रोध कैसे कर सकता है ? जो दूसरे की पीड़ा को समझता हो, वह कामना और लोभ के वशीभूत होकर दूसरे को कैसे कष्ट पहुँचा सकता है? वैसा व्यक्ति माया, मिथ्यात्व एवं निदानरूप शल्य से भी विमुक्त रहता है। णमोक्कार मंत्र द्वारा होने वाली लेश्या-विशुद्धि का यह परिणाम है। MARRIAGES १. आराधनानी वैज्ञानिकता, पृष्ठ : १२२. २. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, पृष्ठ : ९८. | ३. (क) उत्तराध्ययन-सूत्र, अध्ययन-३४, गाथा-३, पृष्ठ : ६१२. । (ख) आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, पृष्ठ : ४१६. ४. जीव-अजीव, पृष्ठ : ११६. S
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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