SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन गुणी या धर्मी है। अत: उसका धर्म-गुण नमस्कार भी नित्य, शाश्वत और अविनाशी ही है।"१ "सफलता प्राप्त करने का पहला उपाय बुद्धि की निर्मलता है। णमोक्कार द्वारा वह सिद्ध होती है। णमोक्कार से नम्र भाव आता है। गुरु की गुरुता और प्रभु की प्रभुता का चिन्तन होता है। उनकी महत्ता और अपनी अल्पता का भान होता है। हृदय में भक्ति का संचार होता है।" __ "श्री नवकार महामंत्र के बीज द्वारा वासित कोई भी मंत्र की आराधना करने वाले आराधक जन्म-जन्मान्तरों में अनेक प्रकार का लाभ करते हैं तथा इस संसार में भी वे विभिन्न प्रकार के साक्षात् लाभ प्राप्त करते हैं।" णमोक्कार मंत्र का वास्तविक माहात्म्य एवं महत्ता उसके अंतरंग स्वरूप में सन्निहित है। उसका बाहरी स्वरूप शब्दात्मक है और आंतरिक स्वरूप अर्थात्मक है। शब्द को यदि शरीर कहा जाए तो अर्थ उसके प्राण-सदश हैं। जिस प्रकार प्राण-रहित शरीर शव कहलाता है, उसी प्रकार अर्थ-रहित शब्द-समवाय का कोई महत्त्व नहीं होता। णमोक्कार महामंत्र का अर्थ के रूप में आख्यान करने वाले श्री तीर्थकर देव हैं। उसका शब्दों के रूप में संग्रथन करने वाले श्री गणधर भगवंत हैं। अरिहंत या तीर्थंकर गुरु हैं, गणधर उनके शिष्य हैं। इससे यह फलित होता है कि अर्थ गुरुस्थानवर्ती है और शब्द शिष्यस्थानीय है। उपाध्याय यशोविजयजी ने लिखा है :--- सूत्र या शब्द राजा है, अर्थ मंत्री है। इन दोनों मे से एक की भी अवगणना- अवहेलना महा अनर्थ का कारण है। सूत्र या शब्द को राजा की और अर्थ को मंत्री की जो उपमा दी है, उसका अभिप्राय यह है कि गणधरों ने शव्द रूप में जो सूत्रों की रचना या ग्रंथन किया, वह राजा-स्थानीय है तथा नियुक्तिकारों, भाष्यकारों, टीकाकारों तथा चूर्णिकारों ने जो अर्थरूप में व्याख्या की, वह मंत्री-स्थानीय है। उन्होंने आगे लिखा है :- सूत्र छाया है तथा अर्थ पुरुष है। जिस प्रकार पुरुष चलता है, छाया उसी का अनुकरण करती है। जब पुरुष स्थिर होता है, ठहरता है, तब छाया भी स्थित रहती है। इसी प्रकार अर्थ-रूप पुरुष जब गतिशील होता है, तब छाया भी उसका अनुसरण करती है। सूत्र और अर्थ का समन्वय समझाने के लिये उन्हें अंध और पंग की भी उपमा दी है। अंध और पंगु मिल जाते हैं तो दोनों अपने इच्छित स्थान पर पहुँच जाते हैं। क्योंकि अंध पंगु को अपने Sndanielatetroent e roidsmates Fa Barue100% REET R १. श्री नमस्कार महामंत्र, अनुप्रेक्षात्मक विज्ञान-(प्रथम पदनुं विवेचन), पृष्ठ : ५३. २. जैन तत्त्व रहस्य (भद्रंकरविजयजी), पृष्ठ : ७८. ३. आराधनानो मार्ग, पृष्ठ ९९. ANAHARASAR SHREE EHEN
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy