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. सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना
प्रथम
गबिन्दु
हए।"
he has __ future,
शेषता
गुणों किया
रास्ता अपने करना
"नमस्कार मंत्र, मंत्राधिराज है। सभी शास्त्रों में उसे प्रथम स्थान प्राप्त है। संसाररूपी रण-क्षेत्र में कर्मरूपी शत्रओं से लड़ कर, उन पर विजय प्राप्त करने का यह अमोघ अस्त्र है। नवकार-मंत्र साधकों को आत्म-शत्रुओं पर विजय दिलाता है।"
"नवकार के पाँच अथवा नव पदों को अनानपूर्वी से भी चित्त की एकाग्रता के लिए गिना जाता है। नवकार का एक-एक अक्षर अथवा एक-एक पद का जप भी बहुत फल देने वाला है।"२ ।।
"धरती में बोया हुआ अनाज का दाना, धरती के रस को चूसकर यथासमय मनोहर अंकुर के रूप में बाहर निकलता है, उसी प्रकार साधक के अंत:करण में बोये गए नमस्कार महामंत्र के अक्षर आत्मा के अमृत का पान कर यथासमय तेज के स्रोत के रूप में बाहर आते हैं।"३
"श्री नमस्कार महामंत्र एक प्रकार की बिजली है अथवा भाप है, एक प्रकार की अग्नि है अथवा जल है। बिजली से जैसे प्रकाश होता है, उसी प्रकार श्री नमस्कार महामंत्र के ध्यान से आत्म-प्रकाश होता है। भाप से जैसे यंत्र चलता है, उसी प्रकार श्री नमस्कार महामंत्र के जप से जीवन-यंत्र व्यवस्थित रूप में चलता है। अग्नि से जिस प्रकार ईंधन जलता है, उसी प्रकार श्री नमस्कार महामंत्र की स्मरणरूपी अग्नि से पाप रूपी ईंधन जल जाता है । जल से जैसे मैल दूर होता है, उसी प्रकार श्री नमस्कार महामंत्र के आराधन रूपी जल से कर्ममल प्रक्षालित होता है।" __“नवकार के ध्यान का योग मानव को विश्वमय पवित्र जीवन की समग्र अनुपम सामग्री प्रदान कर सकता है।"५
"द्रव्य और भाव से महामंत्र के साथ संबंध जोड़े बिना अपना भव-भ्रमण रुकने वाला नहीं है। जब तक भाव से महामंत्र की प्राप्ति न हो जाए, तब तक भाव-प्राप्ति के लक्ष्य हेतु द्रव्य से भी प्रयास चालू रखने होंगे।" __"आत्मा अनादि, अनन्त एवं शाश्वत है। नवकार महामंत्र भी अनादि, अनंत और शाश्वत है। दोनों नित्य-भाव की दृष्टि से शाश्वत हैं। नित्य पदार्थ तत्त्वों की गिनती में आते हैं। जगत् के क्षणिक एवं नश्वर भोगों की अपेक्षा नित्य एवं अविनाशी भावों की विशेषता अधिक हैं। नमस्कार धर्म है, आत्मा उसका धर्मी है। धर्म-धर्मी, गुण-गुणी अन्योन्याश्रयी होते हैं। गुणी नित्य होता है, तो उसके गुण भी नित्य ही होते हैं। आत्मा अनादि-अनंत, अजर-अमर, नित्य, शाश्वत, अविनाशी,
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१. मंत्राधिराज भाग-१, पृष्ठ ३३. ३. श्री नमस्कार-निष्ठा, पृष्ठ : ७३. ५. श्री नमस्कार-निष्ठा, पृष्ठ : ७९.
२. नमस्कार-चिंतामणि, पृष्ठ : ८१ ४. नमस्कार-चिंतामणि, पृष्ठ : ३०. ६. मंत्राधिराज, भाग-३, पृष्ठ ८१३.
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