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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन कठिन और दुर्गम है । यह अपने आप नहीं हो जाता, क्योंकि मनुष्यों की या प्राणियों की स्वार्थवश, लोभवश, काम या मोह के कारण दुष्कार्यों में लग जाने की प्रवृत्ति इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि उसने उनके स्वभाव का सा रूप ले लिया है । यद्यपि वह स्वभाव नहीं है, वह तो विभाव ही है, अज्ञान-जनित मोहवश तथा चिरकालगत अभ्यास से, वह स्वभाव जैसा बन गया है । अत: उसका किंतु निरोध या अपाकरण करने के लिए बड़ा आंतरिक संग्राम करना पड़ता है उसमें बहुत ही उद्यम और उत्साह की आवश्यकता होती है। जीव उस दिशा में अत्यंत उत्साहित होकर आत्म-पराक्रम के सहारे कर्म - प्रवाह को रोकने का घोर उद्यम करता है, तब वह कर्म-प्रवाह कहीं रुक पाता है । ऐसा होने पर फिर दूसरी प्रवृत्ति गतिशील होती हैं, जो आभ्यंतरिक और बाह्य तपश्चरण से संबंधित है; जिससे पूर्व संचित कर्म समुदाय का नाश होता है। यह ज्ञान-क्रियामूलक वह मार्ग है, जिससे समस्त कर्मों का | क्षय होता है । - । णमोक्कार मंत्र जीवन के इस साध्य को पूर्ण करने में सर्वाधिक सहायक सिद्ध होता है । यह महामंत्र समग्र जैन शासन में समान रूप से प्रतिष्ठा प्राप्त है । इसलिए नित्य प्रति णमोक्कार मंत्र के जप पर धार्मिक क्षेत्र में बहुत जोर दिया जाता है । सबसे पहले बालक-बालिकाओं को णमोक्कार मंत्र सिखाया जाता है। यह धर्म-क्षेत्र में प्रवेश का पहला कदम है। शाब्दिक कलेवर की दृष्टि से इस छोटे से मंत्र में समग्र शास्त्रों का मानो सार भरा हुआ है। इस मंत्र का निरन्तर जाप करने से या इसे स्मृति में रखने से मानव में यह प्रेरणा जागती है कि मंत्र में जिन महान पाँच परमेष्ठियों को बंदन, नमन किया गया है- हम भी वैसी स्थिति प्राप्त करें क्योंकि मुक्तत्व या सिद्धत्व का संबंध किसी व्यक्ति विशेष के साथ नहीं है, इसका संबंध प्राणी मात्र के सभी भव्यजीवों के साथ है। यह जप करने वालों, स्मरण करने वालों में आध्यात्मिक भाव का जागरण करता है। उन आराध्य देव की छवि, आभा और व्यक्तित्व प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। " विशेष णमोकार मंत्र बहुत संक्षिप्त शब्दों में इतना उदात्त भाव लिये हुए है कि इसे मंत्राधिराज कहा जाता है । यह सभी मंत्रों का राजा या सर्वश्रेष्ठ है । इतर धर्मों में भी उनके मंत्रों में अपने | आराध्य देवों की उपासना, उनके नाम-स्मरण और जप की शिक्षा दी गई है । णमोक्कार मंत्र से उनमें एक भेद या भिन्नत्व दृष्टिगोचर होता है। अन्य मंत्रों में अधिकांशतः उन देवों के नाम है, जिन को उन-उन धर्मों के अनुयायी पवित्र एवं आदर्श मानते हैं । णमोक्कार मंत्र में किसी व्यक्ति विशेष का १. ऐसो पंच णमोक्कारो, भूमिका, पृष्ठ : ४. 67
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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