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सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना
विश,
उसने किंतु
सका और
नाम नहीं है।
णमोक्कार मंत्र आत्म-विकास के प्रशस्त मार्ग को अपनाने के लिए वास्तव में प्रेरणास्रोत का | काम करता है। उसका जितना जाप किया जायेगा, बार-बार बह प्रेरणा उजागर होती जाएगी, वह वैशिष्ट्य जागरित होगा, जिसके कारण हम अपने इन महान् आराध्यों की आराधना कर सकें, उनका स्मरण कर सकें। णमोक्कार मंत्र के जप के रूप में जो आत्मा का अध्यवसाय होता है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उस अध्यवसाय के अंतर्गत जो शुद्ध परिणाम आते हैं, उनसे सहज ही कर्मों की निर्जरा होती है। उसी अध्यवसाय से, जो मंत्र के उच्चारण के रूप में, आवर्तन के रूप में शुभ-योगों की प्रवत्ति होती है, उससे पुण्यार्जन होता है। उसके परिणाम स्वरूप लौकिक अभ्य दय और उन्नति प्राप्त होती है। उन्नति में बाधक विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है।
जिस प्रकार णमोक्कार मंत्र एक ओर मोक्षाराधना की प्रेरणा जगाने के कारण सबके लिये धर्ममार्ग का संदेश वाहक है, साथ ही साथ वह ऐहिक और पारलौकिक दृष्टि से जन-जन का हित संपादित करने वाला है।
णमोक्कार मंत्र की उत्कृष्टता
आगमों एवं शास्त्रों में णमोक्कार मंत्र का बड़ा माहात्म्य बतलाया गया है। आत्मशोधन का हेतु तो यह मंत्र है ही, नित्य जप करने वाले के रोग, शोक, व्याधि, दुःख, पीड़ा आदि सभी बाधाएं मिट जाती है। णमोक्कार मंत्र सद्बुध्दि, सद्विचार और सत्कर्मों की परंपरा का सर्जन करता है। अज्ञान एवं अहंमन्यता के आग्रह को मिटाने हेतु नमस्कार अनिवार्य है।
पवित्र, अपवित्र, रोगी, दु:खी आदि किसी भी अवस्था में इस मंत्र का जप करने से व्यक्ति बाह्य आभ्यंतर दोनों दृष्टियों से पवित्र हो जाता है। यह सब प्रकार के विघ्नों को नष्ट करने वाला है। सब प्रकार के मांगलिक उपक्रमों में प्रथम या उत्कृष्ट है। किसी भी कार्य के प्रारंभ में णमोक्कार का स्मरण करने से वह कार्य निर्विघ्न रूप में निष्पन्न होता है। इसके विषय में निम्नांकित चूलिका सर्वत्र प्रचलित है :
एसो पंच णमोक्कारो, सबपावप्पणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं ।। सिद्धचंद्र गणी ने इस चूलिका की व्याख्या करते हुए लिखा है- यह नमस्कार मंत्र जिसमें पंच परमेष्ठियों को नमन किया गया है, सब प्रकार के पापों को नष्ट करता है। पापी से पापी व्यक्ति भी
१. नवकार मीमांसा, पृष्ठ : २२.
२. मंत्राधिराज, भाग- २, पृष्ठ : ३६१.
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