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________________ अब एक आत्मप्राप्त सद्गुरु हैं, वो तो सिर्फ श्वेत, शुद्ध, उर्जा से परिपूर्ण सूर्य को ही देखते हैं, उन्हें वर्षा के बादल नहीं दिखते, उन्हें बूंदें नहीं भिगातीं, मेघधनुष नहीं दिखता धनुष के सात रंग, उन रंगों की अनंत पर्यायें भी नहीं दिखती, नहीं लुभाती नहीं रोमांचित करतीं, उनके ज्ञान में भी, रंगों की और उनकी पर्यायों की जानने, समझने पहचानने की उत्सुकता नहीं होती. वो तो जैसे उन सबसे परे सूर्य की श्वेतता में शुद्धता में, उर्जा में ही लीन रहते हैं. उसे ही जानते हैं, उसीका अनुभव करते हैं उस ज्ञानी के पास समय होता है, वो शुद्धता को पाता है, फिर सारे रंग उसके ज्ञान में झलकते हैं, और वो इन सारे रंगों को, उनकी अनंत पर्यायों को भी देखता है, जानता है स्वयं तो सूर्य में ही रमण करता है, उसीकी उर्जा का अनुभव करता है, आनंदित रहता है
SR No.009269
Book TitleMukt Gulam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Maru
PublisherHansraj C Maru
Publication Year2014
Total Pages176
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size23 MB
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