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अरे तू तो इन भावों का खेल ही छोड़, इनमें कहीं भी जीत ही नहीं, हार ही हार है तुझे खेल में जीतना है तो इस खेल के ज्ञायक भाव को, इस ज्ञान की धारा को पकड़ ले तू है, यह ज्ञायक भाव, सिर्फ जानने वाला ही तो तू है
गुरुवाणी सुन, भक्ति पूजा कर, इनमें भी लीन हो जा. लीन हो जा मतलब तेरे ज्ञायकभाव में ही तो लीन होना है. गुरुवाणी तेरे स्वयं के ज्ञायक को ही समझाती है वही तो तेरी भक्ति है. इसी भाव में लीन सिद्ध प्रभु ही तो तेरे पूज्य हैं, तेरे ध्येय हैं
कर ले मिलन इस ज्ञायक भाव से, जीत ले तू इन भावों के खेल को. ज्ञायक भाव ही तू है यही तेरा स्वयं का है, इसके कारण भी तुझमें ही हैं. इसी पर तेरा स्वामित्व है, यही तेरा ज्ञान है यही तेरा स्वयं का दर्शन है, सुख है, आधार है।
ज्ञायक भाव, ज्ञायक भाव ही मेरे जीने का आसरा है, मेरी मान्यता का सहारा है मुझे अंतर्मुख होने के लिये, मेरे प्रभु से मिलन करने के लिये, यही मेरा ध्यान है, ध्येय है
सुख है, मेरा स्वयं का है, मेरा ही है
मेरा
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