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मर्यादा
बचपनसे ही माँ-बापने सिखाया मर्यादासे रहना चाहिये, मर्यादासे उठना बैठना, मर्यादावाले कपड़े पहनना, मर्यादासे ही बातचीत करना, जीना ही मर्यादासे
तब तो इस लोकमर्यादा का अर्थ ही यही समझे थे कि समाज में समाजवाले, जिसे, जिस तरहके व्यवहार, कपड़े आदि को उचित समझें वैसे ही यदि हम रहें, तो हम मर्यादासे जी रहें हैं
समाज में ख़ुशी से, सभी की आंखोमें अच्छे बन रहने का यही एक तरीका है. सबके संग, मिलझुल कर रहना ही सच्चा रहना है इसमें कभी कभी समझौते के लिये थोड़ा झूठ या चोरी भी हुई तो क्या
जिनशासनका अध्ययन शुरू किया तो बड़ा आश्चर्य ही हुआ सच्ची मर्यादा क्या है, मर्यादा से, मर्यादा में कैसे जीयें ?
जिनशासन तो कहता है, समाजको, और समाज जो उचित समझता है, उसे छोड़
समाज तो बदलता ही रहता है, तू तो तेरे स्व में शाश्वत को पहचान
यदि तू खुदको पहचाने बगैर समाज जैसे जीता है, वैसे जिए तो यह तेरी मर्यादा का भंग है। तू तो खुद के वसूलों को भी भूल बैठेगा, सत से भी दूर हो जायेगा
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