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गुरुओं के पुरुषार्थ के ही तो ये दिए हैं, इन्ही के पुरुषार्थ का ही तो श्रृंगार है, दिये जलायें और स्व पुरुषार्थ को प्रगटायें कर्मों को जलायें और स्वतंत्रता को पायें, गुरुओं का उपकार कभी न भूलें, गुरुओं का अनमोल साथ कभी न छोड़ें कितने हैं हम भाग्यशाली कि मिले हैं हमको वीतरागी गुरु और वीतरागी जिनवाणी
अब तो गुरुओं के संग रह रोज जिनवाणी को सुनना है स्वात्मा को अवश्य ही पहचान रोज दिवाली मनाना है
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