________________
माँ भी है, शरीर भी हैं, सत देव गुरू शास्त्र भी हैं शुभाशुभ भाव भी हैं, उपकार के भाव भी हैं इन सबसे गहरे मेरे निज शाश्वत, अपरिणामी भाव भी है, मैं अकेला ही निर्भय, सुख शांतिमय ही मैं हूं
मैं मानूं उपकार तेरा सदैव ही, हमेशा ही फिर भी अणुमात्र भी कभी भी न हो सका किसीका ऐसा स्वतंत्र, त्रिकाली, अकेला, कृत-कृत्य तत्त्व हूं मैं स्वयं ही, इस जगत से भिन्न, निराला तत्त्व हूं
25