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यह इन्सान का पुतला संसार में भले जिये, कर्मों का भोक्ता भी बने, पर मैं तो सिर्फ जानता ही हूं. मैं तो ज्ञायक कर्म चेतना, और कर्मफल चेतना दोनों को भी जानूं और जानने वाले ज्ञायक को भी जानूं
जानना ही तो मेरा काम है, ज्ञाता द्रष्टा ही मैं हूं ज्ञानदर्शन उपयोग ही मेरे हैं, ज्ञानदर्शन चेतना ही मैं हूं बस जानते जानते स्वयं को, स्वयं के ही वैभव को मैं इन्सान छोड़ भगवान ही बन बैठता हूं, भगवान ही हूं