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इन्सान हूं या भगवान
सभी हूं और भगवान भी हूं. साथ साथ ही हूं कैसे है यह असंभव संभव, यही तो गुरु ने समझाया है मेरे पूज्य पंच परमेष्ठियों ने अनुभव करके यथार्थ रूप से प्रतीति कर ही तो मुझे भी करुणा से बतलाया है
इन्सान हूं तो कर्मों से, मन-वचन-काया का एक पुतला हूं
इसी पुतले में ही तो भगवान ज्ञायक भी है बसा
कर्मों का भी उदय विलय है वर्तता, और यह पुतला
इसका ही कर्ता-भोक्ता बन बैठता, पर भगवान तो ज्ञाता ही है
बस कर्म चेतना भी है और कर्मफल चेतना भी यही तो इन्सान का अनुभव भी है, पर साथ साथ
इन सबको जानने वाला प्रभु भगवान भी है ही मैं जानने वाला भगवान ही हूं, यह पुतला नहीं
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